"श्री -राम" - "Sri-Ram"

 

                                                                       


                                                                                     




The Sea Submerged Dwarika of Bhagwan Krishna is looking Indian - American collaboration to move further. Some more than 100 satellite photographs of Sea submerged Dwarika are published in my book - DISCOVERY OF LOST DWARIKA - available at Amazon in ebook and paperback. The link is :

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वर्ष २००० में डॉ झा तथा डॉ राजाराम की बहुचर्चित पुस्तक प्रकाशित हुई थी "दे देसीफर्ड इंडस स्क्रिप्ट - मेथोडोलॉजी , रीडिंग्स , इंटरप्रिटेशन" इस पुस्तक को मार्क्सवादी इतिहासकारों ने अस्वीकृत कर दिया . थापर तथा विट्ज़ेल ने इस पुस्तक के विचारधारा को हिंदुत्व अजेंडा के राजनीती से जोड़ दी . डॉ अमर्त्य सेन ने विट्ज़ेल की बातों पर बगैर पुस्तक पढ़े लम्बे चौड़े लेख इस पुस्तक के आलोचना में लिख डाले. यह पुस्तक महाभारत के शांति पर्व के उस हिस्से को टटोलती है जिसमें मोहनजोदड़ो के प्राचीन मुद्रा लेखों की जानकारी है . शांतिपर्व बतलाता है ऋषि यास्क मोहन-जोदड़ो में भगवान द्वारिकाधीश की सहायता से किसी प्राचीन मुद्रा को खोज रहे हैं जो प्राकृतिक विप्लव में जमीन में खो गए हैं. शांतिपर्व यह भी बतलाता है की जमीन में खो गए इस प्राचीन मुद्रा लेख में निघण्टु तथा निरुक्त के पाठ हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह खोज की गयी की प्राचीन निघण्टु के बहुत सारे लेख सिंधु मुद्रा में मिलने चाहिए . यह खोज सच साबित हुई. कोई २००० सिंधु मुद्रा को पढ़ी गयी. जिसमें निघण्टु और निरुक्त के पाठ प्राप्त हुए हैं. यह पूरे विश्व के विद्वत समाज को इस पुस्तक ने विस्मृत किया वही मार्क्सवादी इतिहासकारों के भारतीय उपमहाद्वीप में फैले छद्म इतिहास को एक ही झटके में इसने हवा में उछाल दी . प्रस्तुत लेख मोहन-जोदड़ो से है जिसमें लेख में "श्री -राम" लिखी है. इस लेख को ध्यान से देखें तो बहुत सारे चिन्ह प्राचीन देवनागरी तथा प्राचीन अशोक की ब्राह्मी में मिल रहे हैं . पहला चिन्ह मछली चिन्ह आज भी देवनागरी का "श्र" में प्राचीन सिंधु मुद्रा के मछली चिन्ह तथा "र" के लिए नीचे खड़ी डंडी का प्रयोग करता है . यही विधान प्राचीन ब्राह्मी लेखन का था . अशोक की ब्राह्मी प्राकृत भाषा लिखे जाने के कारण संस्कृत क्लिष्ट अक्षर की आवश्यकता नहीं थी उसे सरल कर ली गई या हटा ली गई . देवनागरी में यह विद्यमान रही क्योंकि यहां संस्कृत लेखन देवनागरी में ही होती थी. मछली के ऊपर टोपी , अशोक की ब्राह्मी लिपि में भी बड़ी "ई " की मात्रा बताने के लिए प्रयुक्त हो रहे है . दूसरे तथा तीसरे चिन्ह में खड़ी रेखा अशोक की ब्राह्मी तथा देवनागरी में भी प्राचीन "र" तथा ध्वनि "म" बतलाने के लिए प्रयुक्त होती रही है. मोहन-जोदड़ो के "श्री-राम" के लेख से स्पष्ट होता है की "राम" और "कृष्ण" मिथक नहीं - भारत की मूल आत्मा हैं, जो मोहन-जोदड़ो से अनेक हजार वर्ष पूर्व "श्री-राम" के आस्था और ऐतिहासिकता को स्पष्ट करते हैं. जिसे इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेताओँ ने अपनी मूर्खता में मिथक मान लिया.

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"The Deciphered Indus Script : Methodology, Readings, Interpretations" by Dr Jha and Dr Rajaram, was published in the year 2000. The book was universally rejected by the Marxist people. Thapar & Dr Amartya Sen , even reading a page rejected the work on the words of Witzel for supporting the Hindu agenda. This work is an attempt to read the Indus Seals through the Nighantu. The Nighantu, is a glossary of Sanskrit words compiled by the sage Yaska. It is stated that the "Shanti Parva" of the Mahabharata (the ancient history of India) preserves an account of Yaska's search for older, "buried" glossaries- perhaps the ancient seals--in compiling his own. From this, it was concluded that some of the seals must contain words found in Yaska's Nighantu. This conclusion was critical, for it greatly narrowed the scope. This work demonstrated that how the ancient signs have travelled in the Ashokan Brahmi and the Ancient Devanagari. In the image this is an Harappan Script where "Sri-Ram" is written. 


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