"Kavatapuram Town" - The Lost Land of the Pandyan Kingdom.
*Birendra K Jha
Here the scope of research is very limited. This is examined here that when Dwarka City of Bhagwan Krishna was existing, then a contemporary site was also existing in South India. This fact needs Archaeological proof.
In Gulf of Mannar, there is an island which in old archives is known as "Pandyan Tivu". This was the land of the great Pandyan Kingdom. This Kingdom sank exactly at the same time when Dwarka sank in water. The great Pandyan participated in the Kurukshetra war along with Bhagwan Krishna. This is our recorded history. After this war, the Pandava King Yudhishthira became the Chakravarti Samrat of India. The Rajasuya ceremony of Yudhishthira was again attended by the Pandyan Kingdom (2:36,43). Before the Kurukshetra war, a Tamil Sangam conference was organized by the Pandyan Kingdom, where Bhagwan Krishna attended as the Chief Scholar Guest. He attended this conference from Dwarka as a Great Scholar of that time.
Indians lost this Pandyan Kingdom along with Dwarka. Till now the Indian Government has not made any sincere efforts to find out the lost Dwarka and the lost Pandyan Kingdom. Archaeologists also failed to put their minds in the right direction.
Satellite band 8-4-3 has a special feature of penetrating underwater and exploring the ancient Archaeological sites. Below after Hindi translation important images are given. The first image shows, the site identified in old inscriptions as "Pandyan Tivu". "Tivu" is the Tamil version of the Sanskrit word "dvipa". In image two, the enlarge picture of the "Pandyan Tivu" is given. The entire important Archaeological sites are below this island submerged completely under the water. This island is the circuit which is leading us to reach the Pandyan Kingdom, just below this island, which is shown in the 3 and 4 image numbers. The photograph number 3 and 4 are taken using the Analogue Technique. There are several attractive Archaeological features of ancient buildings and towns are available here. This is the site of the great Pandyan Kingdom. This is the place where Bhagwan Krishna came from Dwarka to attend the Tamil Sangam conference. This is the heroic land of the Pandyan Kingdom whose countless heroes took part in the battle of the Kurukshetra war with Bhagwan Krishna.
This completely changes the false and bogus understanding of current Indian history. This is the legacy of the entire "Bhartiya Civilization" which is represented by Dwarka and the Pandyan Kingdom in two different places. The language may be different. The food may be different. But, a common culture exists. This is the great Sanatan Hindu culture which exists from Dwarka to the Pandya Kingdom. After Dwarka submerged, people migrated to the Saraswat Province of Punjab at Harappa and its surroundings. This is recorded in ancient history. Similarly, people of the Pandya Kingdom also migrated to nearby coastal areas which still exist in India. The Madurai Temple of Meenakshi Ji is the last remembrance of this Pandyan Kingdom. The Dwarka and the City Kavtapuram of the Pandyan Kingdoam are pure Pre- Harappan sites.
यहाँ पर मेरे खोज का दायरा बहुत ही सीमित है। खोज का विषय यह है की जब द्वारका अस्तित्व में थी, तब दक्षिण भारत में एक समकालीन स्थल भी अस्तित्व में थी । यह महान पांड्य साम्राज्य की भूमि थी, जो ठीक उसी समय डूब गई जब द्वारका पानी में डूब गई थी। महान पांड्य ने भगवान कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग लिया था। यह हमारा दर्ज इतिहास है। इस युद्ध के बाद, पांडव राजा युधिष्ठिर भारत के चक्रवर्ती सम्राट बने। युधिष्ठिर के राजसूय समारोह में फिर से पांड्य साम्राज्य ने भाग लिया (2:36,43)। इस कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले, पांड्य साम्राज्य द्वारा एक तमिल संगम सम्मेलन आयोजित की गई थी, जहाँ भगवान कृष्ण मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने उस समय के महान विद्वान के रूप में द्वारका से इस सम्मेलन में भाग लिया था। भारतीयों ने द्वारका के साथ साथ इस पांड्य साम्राज्य को भी खो दिया। अब तक भारत सरकार ने खोए हुए द्वारका और पांड्य साम्राज्य को खोजने का कोई ईमानदार प्रयास नहीं किया है । पुरातत्वविद भी सही दिशा में दिमाग लगाने में विफल रहे।
सैटेलाइट बैंड 8-4-3 पानी में घुसकर प्राचीन पुरातत्व भूमि को टटोलने की विशेष विशेषता रखती है। नीचे 4 महत्वपूर्ण चित्र दिए गए हैं । एक चित्र में पुराने अभिलेखों में "पांड्यन तिवु" के रूप में इस स्थल को पहचान मिली है। "तिवु" संस्कृत शब्द "द्वीप" का तमिल संस्करण है। यह पांड्य साम्राज्य तक पहुंचने का परिपथ है। यह परिपथ इस द्वीप के ठीक नीचे एक स्थान की ओर ले जाती है जिसे 3 और 4 चित्र में दिखाई गई है। यह वर्तमान "पांड्यन तिवु" द्वीप के ठीक नीचे है । यही महान पांड्यन साम्राज्य का स्थल है। यही वह स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण, द्वारका से तमिल संगम सम्मेलन में भाग लेने के लिए आये थे। यही वह पांड्यन साम्राज्य की वह वीर भूमि है जिसके अनगिनत वीरों ने भगवान् कृष्ण के साथ कुरुक्षेत्र के युद्ध में भाग लिया था।
यह वर्तमान भारतीय इतिहास की झूठी समझ को पूरी तरह से बदल देती है। यह संपूर्ण "भारतीय सभ्यता" की विरासत है, जिसे द्वारका और पांड्यन साम्राज्य दो विभिन्न स्थान में दर्शाते हैं। भाषा अलग हो सकती है। भोजन अलग हो सकती है। लेकिन, एक समान हिंदू संस्कृति मौजूद है। यह महान सनातन हिंदू संस्कृति है, जो द्वारका से लेकर पांड्य साम्राज्य तक मौजूद है। द्वारका के जलमग्न होने के बाद, लोग पंजाब के सारस्वत प्रांत स्थित हड़प्पा ओर उसके आस पास चले गए। यह प्राचीन इतिहास में दर्ज है। इसी तरह, पांड्य साम्राज्य के लोग भी पास के तटीय क्षेत्रों में चले गए, जो आज भी भारत में मौजूद है। पांड्य साम्राज्य का कवतापुरम और द्वारका शुद्ध रूप से पूर्व-हड़प्पा स्थल हैं।
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