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ज्ञानवापी

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☝ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर का दृश्य . लन्दन के ब्रिटिश लाइब्रेरी में १९वीं शताब्दी के शुरुआत में ली गई ज्ञानवापी का चित्र. यह कूप दीवार से घिरी है  मत्स्य पुराण में विश्वनाथ मंदिर का वर्णन मिलता है. इसमें अविमुक्तेश्वर, विश्वेश्वर और ज्ञानवापी का उल्लेख किया गया है. इसके बाद स्कंदपुराण में भी उल्लेख किया गया है. स्पष्ट है ज्ञानवापी  पुरातात्विक महत्त्व की सम्पदा है. शिवाजी महाराज को आगरा कारागार से छद्म रूप में राजा जय सिंह - प्रथम ने भाग निकलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. औरंगजेब ने इसका उत्तर बनारस के मंदिर को तोड़ कर दी. यह सर्वविदित तथ्य  है की  चाटुकार इतिहासकार इस बात को नहीं मानते. संयोग से  मत्स्य पुराण में  जिस ज्ञान वापी का वर्णन मिलता है वह यूरोप  के  प्रतिष्ठित भ्रमणकारी फोटोग्राफरों ने इसका चित्र संकलन ली है जो ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन  में संगृहीत है.   कुछ लोग "प्लेस औफ वरशिप एक्ट १९९१"   के आधार पर  इस स्थान को पर्यवेक्षण के अधिकार से वंचित रखना चाहते हैं.   यह १९९१ की वह कांग्रेस क़ानून है, जिसने  काशी और मथुरा का रास्ता हिन्दू आस्थावान लोगों के लिए बंद कर द

"शिशुपाल वध" और द्वारका की अश्व किला

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  ☝माघ रचित "शिशुपाल वध" में द्वारका के अश्व किला का विहंगम वर्णन अनायास नहीं मिलती. प्राचीन सूचना के आधार पर माघ ने द्वारका का विहंगम चित्रण खींचा है. जिसका भारतीय संस्कृत साहित्य में जोड़ा नहीं    "होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो॥ अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है" अनमने  भाव से भारत के लोगों  ने  भगवान कृष्ण को जाना है. हमारे इतिहासकार तो कुछ बोलते ही नहीं.  हमारे कथावाचक और माघ   जैसे प्राचीन साहित्यकार  अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण का गुण गान करते हैं. भागवत के जरासंध वध के स्थान पर चेदिनरेश पराक्रमी  शिशुपाल का वध तो कोई साधारण मनुष्य कर नहीं सकता. माघ की "शिशुपाल वध" में भगवान कृष्ण के वीरतापूर्ण - तेजोमय स्वरूप की चित्रण प्राप्त होती है. बुद्धिमान माघ ने भगवान कृष्ण के लिए प्राचीन ऐतिहासिक  शब्द  सम्बोधन में  वराह , आदिवराह तथा  महावराह कहा है.   भगवान  बलराम,  शिशुपाल को चेदि राज्य में वध की बात करते हैं. भगवान कृष्ण ने इस योजना का  समर्थन नहीं  किया. योजना बनती है शिशुपाल को   चेदि राज्य  से बाहर तथा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ  मे

Analogue Technology: Oil Source Detection Tool

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     ☝ The Dwarka of Bhagwan Krishna is in danger. The petroleum wastes have killed the marine environment of this area.  The orange color petroleum wastes coming from  the ship is a daily affair. It shall kill the Dwarka Island.  Save it before it is too late.      I have demonstrated the effective use of the Analogue Technology in detecting the undersea archaeological materials - up to the level where Sunlight travels effectively. Now I am demonstrating how the Analogue Technology has been used in tracking the oil pollution. The oil pollution has been responsible for damaging the marine life of the Dwarka of Bhagwan Krishna. The rate of damage is fearful. The petroleum wastes have killed mangroves. Any moment, Bhagwan Krishna island may be washed away by sea. While tracking the oil pollution, by chance I have discovered and detected, somewhere in the Indian site,  a large Oil Rig. I have called it the "Krishna Oil Rig". This Oil Rig is larger then the Mumbai High. This Oil

माता सीता के अधिकार की रक्षा

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  (भारत के समस्त स्त्री जाति के अधिकार की  रक्षा में   यह लेख तकनीकी रूप से न्याय के जानकार लोगों के लिए लिखी गई है. विषय वस्तु कहीं कठिन प्रतीत हो सकते हैं ) यह  सच है  प्राचीन भारत की न्याय विधि बहुत प्रतिभाशाली है.  यह  भारत की ऐसी महान ज्ञान तथा संपत्ति है जो पुस्तकों तक ही सीमित रह गई. जब इस प्राचीन न्याय सूत्र के जानकार न रहे तो हमारे न्याय व्यवस्था के निपटारे में हमें दूसरी न्याय सूत्र देखने पड़ते हैं. भारतीय संविधान का एक सुन्दर पक्ष यह है की प्राचीन न्याय सूत्र  भारत के न्याय प्रशासन के आवश्यक भाग रहे हैं.  यह अलग बात है इस प्राचीन न्याय सूत्र के जानकार अब रहे नहीं, इसलिए भारत के न्यायालय में प्राचीन न्याय सूत्र का उल्लेख नहीं दिया जाता.  जस्टिस मार्केण्डय काटजू   के बाद प्राचीन न्याय विधि में  पारंगत विद्वान नहीं मिलते. मनुस्मृति १०६ तथा १८७ एक जटिल न्याय सूत्र देती है जब पिता  की मृत्यु हो जाती है तो उसकी पूरी संपत्ति उसके "सपिण्ड" को प्राप्त होती है. आश्चर्य यह होती है, विश्व के सभ्य से सभ्य देश के न्याय प्रक्रिया ने प्राचीन मनु स्मृति के न्याय सूत्र को ही रखा है.

हड़प्पा समकालीन स्थल हस्तिनापुर : एक रिपोर्ट. Hastinapur Excavation- A Forgotten Site of the Harappan Era

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    ☝यह दृश्य है हस्तिनापुर का - जहां आज खुदाई चल रही है  भारतीय प्रजा की आस्था हस्तिनापुर में चरम अवस्था में है.  १९५० में भारत सरकार ने डॉ बी. बी. लाल के नेतृत्व में इस स्थल की खुदाई परीक्षण की थी. जो सामान यहां से प्राप्त हुए, वे काफी चौंकाने  वाले थे. इस नई खोज से तत्कालीन भारत सरकार असमंजस में पड़ गई. भारत के विभ्रमकारी इतिहास,  जो इस्लामिक आक्रमणकारियों को महिमा मंडित करने के  विचारधारा में लिखे गए थे,  हिलने लगे. दिल्ली का इंद्रप्रस्थ जिसे पांडवानी किला भी कहते हैं तथा हस्तिनापुर, महाभारत के साक्ष्य को जीवंत कर रहे थे.    नेहरू तथा अबुल कलाम आजाद जो उन दिनों क्रमशः भारत के प्रधानमंत्री तथा शिक्षा मंत्री थे, ने इस खुदाई को बंद करवा दी. कोई सत्तर वर्षों तक  भारत की आत्मा हस्तिनापुर  के टीले में  दबी रही.  यह अयोग्य शासक को चुनने का प्रतिफल थी.   नई सरकार ने करवट ली. सत्तर वर्षों के बाद, हमारे यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी  हस्तिनापुर में खुदाई करवा रहे हैं.   कोई ५०० करोड़ रुपये की बजट मात्र हस्तिनापुर के खुदाई के लिए आवंटित की गई है. ग्रेटर नोएडा से पुरातात्विक संस्थान की ए

Bhagwan Krishna- The Ultimate Management Guru.

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  In the Mandukya Upanishad there is an important thought process on the Human Resource Development. This highlights the required area of the "Learning & Development". This is a skill, which hits the "Competency Mapping" in the "Leadership Development". The Mandukya Upanishad, starts this brain storming session with  a story of two frogs. One frog living in "Ocean", falls inside a small "Well", where another frog is there. The "Ocean" frog speaks about the wisdom of the "Ocean". The "Well" frog who has never seen "Ocean", starts joking - is your "Ocean" is such vast then this  "Well"? The "Ocean" and the "Well" demonstrate the different learning skill of people. The Modern Human Resource practice, unfortunately, centres around the "Well". It has not yet seen the vastness of   the "Ocean". I shall demonstrate here how the Indian wisdom

जनकपुर

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अयोध्या को जनकपुर से रेल मार्ग से जोड़ने की अदम्य इच्छा शक्ति साधारण नहीं है. यह पुरुषार्थ मांगती है.  इस माह,  २ अप्रैल को जनकपुर,  भारत से जुड़ गई.  यह सांस्कृतिक बंधन अत्यंत प्राचीन है. जनकपुर ने १९८८ में यूनेस्को से  सीता माता के प्राचीन परिसर को सुरक्षित रखने का आग्रह किया था. भारत की अयोध्या चूक कर गई. इस देश में विभ्रम चल रहा था की भगवान राम और उनका  जन्म स्थान सत्य है या मिथक. पर जनकपुर की विचार दृष्टि स्पष्ट थी. अयोध्या के राम और जनकपुर की माता सीता के विवाह मंडप को जनकपुर ने अबतक सुरक्षित रखा है. यह इसलिए हो सका क्योंकि नेपाल ने माता सीता को भुलाया नहीं,  वहीं भारत ने भगवान राम को अयोध्या में ही भुला दिया. यह रेलमार्ग एक दुःसाहस है - जो मात्र भारत ही कर सकता है. भारत के जयनगर  से जनकपुर की यात्रा सुन्दर धान के लहलहाते खेतों से गुजरते हुए नेपाल में वैदेही स्टेशन पर रुकती है. माता सीता का दूसरा नाम वैदेही है. वैदेही और जनकपुर के बीच के रेल खंड अनेक ऐसे स्थलों से गुजरते  हैं जो रामायण काल से जुड़े हैं.   यहां नेपाल के सरकारी पुरातात्विक विभाग ने  सीता माता  के समय के अनेक पुरावशेषो