हड़प्पा समकालीन स्थल हस्तिनापुर : एक रिपोर्ट. Hastinapur Excavation- A Forgotten Site of the Harappan Era

 

 

☝यह दृश्य है हस्तिनापुर का - जहां आज खुदाई चल रही है 

भारतीय प्रजा की आस्था हस्तिनापुर में चरम अवस्था में है.  १९५० में भारत सरकार ने डॉ बी. बी. लाल के नेतृत्व में इस स्थल की खुदाई परीक्षण की थी. जो सामान यहां से प्राप्त हुए, वे काफी चौंकाने  वाले थे. इस नई खोज से तत्कालीन भारत सरकार असमंजस में पड़ गई. भारत के विभ्रमकारी इतिहास,  जो इस्लामिक आक्रमणकारियों को महिमा मंडित करने के  विचारधारा में लिखे गए थे,  हिलने लगे. दिल्ली का इंद्रप्रस्थ जिसे पांडवानी किला भी कहते हैं तथा हस्तिनापुर, महाभारत के साक्ष्य को जीवंत कर रहे थे.    नेहरू तथा अबुल कलाम आजाद जो उन दिनों क्रमशः भारत के प्रधानमंत्री तथा शिक्षा मंत्री थे, ने इस खुदाई को बंद करवा दी. कोई सत्तर वर्षों तक  भारत की आत्मा हस्तिनापुर  के टीले में  दबी रही.  यह अयोग्य शासक को चुनने का प्रतिफल थी.  

नई सरकार ने करवट ली. सत्तर वर्षों के बाद, हमारे यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी  हस्तिनापुर में खुदाई करवा रहे हैं.   कोई ५०० करोड़ रुपये की बजट मात्र हस्तिनापुर के खुदाई के लिए आवंटित की गई है. ग्रेटर नोएडा से पुरातात्विक संस्थान की एक टीम को  हस्तिनापुर में  बैठने का निर्देश दी गई है. अब तक जो चीजें वहां से प्राप्त हुई  हैं , उसने एक ही झटके में हस्तिनापुर को हड़प्पा सभ्यता के  बराबर  ला खड़ी की है. विपुल मात्रा में प्राचीन मंदिर के खम्बे जिस पर सुन्दर चित्र उकेरे गए हैं तथा सिरेमिक पोटरी ( भांड ) मिले हैं, जो सुव्यवस्थित सिरेमिक इंडस्ट्री की ओर  भारत के प्राचीन समाज को इंगित करती है.  अभी तक उत्खनन में कांच बनाने का यंत्र, लंबी दीवार, प्राचीन दीवारों के अवशेष, चित्रित मृदभांड, प्राचीन सिरेमिक बर्तनों के अवशेष, मिट्टी के बर्तन, चूड़ियां, आग में जली हुई हड्डियां और  गंगा नदी के जीवाश्म के अवशेष विपुल मात्रा में यहां मिले हैं, जो यह इंगित करती है की कभी यह स्थल गंगा नदी के नीचे भी डूब गई थी. महाभारत स्वयं यह कहती है की हस्तिनापुर, बाढ़ से नष्ट हो जाने के बाद, दूसरी जगह नई  राजधानी बसाई गई. तब से हस्तिनापुर का यह स्थल वीरान पडी है.   

मेरठ से चालीस किलोमीटर दूर हस्तिनापुर के पांडव टीले पर चल रही खुदाई में पुरातत्व विभाग की टीम को बीते दिनों पुराने मंदिर के स्तंभ का एक अवशेष मिला है.  करीब तीन फीट वाले मंदिर के स्तंभ का अवशेष मिलने से आसपास बड़े और प्राचीन मंदिर के होने की संभावना  है. यद्यपि डॉ बी. बी. लाल ने हस्तिनापुर को बाहर लाने का क्षणिक ही सही,  पर सुन्दर   प्रयास किया. परन्तु उन्होंने महाभारत के समय का आंकलन अनुमान के आधार पर की है. यह आंकलन गलत है.  भगवान  कृष्ण की समुद्र में डूबी द्वारका की मेरी खोज में, मैंने रेडियो डेटिंग को  काल का मुख्य आधार माना है, जो ३१०० ईस्वी पूर्व की हैं. पुरातत्व में अनुमान के   आधार पर कुछ कहना एक त्रुटि और गलत परम्परा है. ज्ञात हो की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग अपने जन्म काल से ही ईसाई अवधारणा में,  १५०० ईस्वी पूर्व में हुए अनर्गल आर्य आक्रमण की विचारधारा रखती है.  स्वतंत्रता  के पश्चात यही अवधारणा चिर काल तक पुरातात्विकों की रही. इन पुरातात्विकों की काल्पनिक अनुमान  बहुत ऊंची है. हस्तिनापुर और द्वारका महाभारत के मात्र स्थान विशेष नहीं, अपितु वैदिक सभ्यता तथा हिन्दू दर्शन के महान केंद्र हैं. भगवान कृष्ण के साथ इन दो स्थलों का सीधा सम्बन्ध  है.  इसलिए पुरातात्विकों ने हस्तिनापुर और द्वारका को मिथक बताई  या हड़प्पा जैसे नगर केंद्र के बाद बताई गई. यहां मात्र काल्पनिक अनुमान ही थी जहां प्रमाण की कोई विचार दृष्टी नहीं थी.   

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दो विशिष्ट पुरातात्विक डॉ. बी. बी. लाल तथा डॉ. अस.आर.राव, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के स्थापित मान्यता से बाहर नहीं निकल पाए. यही कारण है - इन दोनों  पुरातात्विकों  ने बिना यथोचित प्रमाण के महाभारत का समय, अनुमान के आधार पर,  १५०० ईस्वी पूर्व में हुए अनर्गल आर्य आक्रमण के बाद रखा. यह एक बड़ी अक्षम्य गलती इन दो पुरातात्विकों की थी. अक्षम्य इसलिए की आने वाले इतिहास के शोधार्थियों ने इनके ही निर्धारित काल समय को सही मान लिया. दिल्ली के पांडवानी किला को महाभारत से जोड़ने का साहस  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग  नहीं कर सकी, क्योंकि ईसाई अवधारणा में  इस एजेंसी की स्थापित मान्यता है की महाभारत झूठी तथा मिथक हैं. इसका  प्रमाण है स्वयं  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा पांडवानी किला के मुख्य  द्वार पर लगाईं गई सूचना बोर्ड,  जिसमें  महाभारत को झूठी तथा कपोल कल्पना मानी गई है. जब यह दुर्दशा स्वयं  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की हो तो ७० वर्षों तक महाभारत के महत्वपूर्ण साक्ष्य हस्तिनापुर की खुदाई न होने देना, या समुद्र में डूबी द्वारका की खोज न करना,  यह बताती है की एजेंसी में अयोग्य लोगों का जमघट है - जिन्हें भारतीय संस्कृति की तनिक भी चिंता नहीं. स्वयं  पार्लियामेंट्री  स्टैंडिंग कमिटी  भी इस चिंता से केंद्र सरकार को अवगत करा चुकी है.  अभी तक  एजेंसी में  कोई सुधार नहीं हुई है. इस एजेंसी को आवश्यकता है,  एक आक्रामक  विशिष्ट पुरातात्विक या संस्कृति की चिंता करने वाला नेतृत्व  का, जो इसे नया जीवन दान दे सके .         

हस्तिनापुर, भगवान कृष्ण से जुडी,  महाभारत का  एक ऐसे काल समय की घटना है,  जिसका सही काल आंकलन डॉ. बी . बी.  लाल तथा डॉ.  अस. आर. राव नहीं कर पाए. इनके काल निर्धारण  में अनेक दोष हैं.  हस्तिनापुर के समय चरम सिरेमिक इंडस्ट्री के प्रमाण प्राप्त होते हैं. डॉ. बी. बी. लाल स्वयं यह कहते हैं की हड़प्पा कालीन स्थल रोपड़ में "हड़प्पन  पोटरी वेयर" और  "सिरेमिक इंडस्ट्री के पोटरी वेयर" एक साथ प्राप्त होते हैं. जो यह   स्पष्टतः  बतलाते हैं की   हड़प्पा कालीन स्थल रोपड़ तथा  हस्तिनापुर के  सिरेमिक इंडस्ट्री एक समय की है.   कालीबंगन में हमें सिरेमिक टाइल्स प्राप्त हुए हैं.  इस प्रकार हस्तिनापुर, रोपड़ तथा कालीबंगन के सिरेमिक इंडस्ट्री,  समुद्र में डूबे भगवान कृष्ण के   द्वारका के सिरेमिक इंडस्ट्री से जुड़ जाते हैं. द्वारका में मुझे भगवान कृष्ण के राजमहल में सिरेमिक प्लेट के बने मछली तथा द्वारका के प्राचीन पोत में लगे अनेक ऐसे सिरेमिक टाइल्स मिले हैं, जो द्वारका, हस्तिनापुर , कालीबंगन तथा रोपड़ को एक काल खंड में खड़ा करती है . 1952 में डॉ. बी. बी. लाल ने संयोग से भारत सरकार को एक रिपोर्ट प्रेषित की थी ( "Excavations At Hastinapur" )   जिसे देखने की जरूरत है.  डॉ. बी. बी. लाल यह स्पष्टतः कह रहे हैं की हस्तिनापुर के "पेंटेड ग्रे वेयर", हड़प्पा कालीन अवशेष  हैं.    रिपोर्ट में वे पृष्ठ ७ में लिखते हैं:  

"It was indeed  gratifying to find there ( about the Tilpat site )  the same ceramic sequence,  as was found at Hastinapur. The author was no less anxious to ascertain the chronological horizon of the Painted Grey Ware with reference to the Harappa Ware...the present author think that hereabouts could be found a site which might contain both the Harappa and Painted Grey Wares.  A search was made and during December 1950.. he ( Sri MS Vats ) discovered the mound at Rupar.. which contained not only the Painted Grey Ware but also Harappan pottery....".  

आज हस्तिनापुर में  विपुल "सिरेमिक पेंटेड ग्रे वेयर"  के जो प्रमाण प्राप्त हुए हैं, उसने एक ही झटके में समुद्र में डूबे द्वारका  तथा वहां के विशाल सिरेमिक इंडस्ट्री को हस्तिनापुर के सिरेमिक इंडस्ट्री के साथ,   जोड़ दी है.  द्वारका और हस्तिनापुर एक ही काल खंड की सत्य घटना हैं. द्वारका के भगवान कृष्ण सत्य हैं.  भगवान कृष्ण के   पवित्र पग हस्तिनापुर में  पड़े हैं.  ७० वर्षों तक भारत के इतिहास पर एक विभ्रमकारी लेखन लिखी गई है. यह स्पष्टतः कहती है की भारत के  पुरातत्व विज्ञान में भी तत्कालीन वामपंथी विचारधारा में पुरातत्व विधा  को देखी गई. जो अत्यंत ही लज्जाजनक है. यह भारत के पुरातत्व और  इतिहास  विधा की अविकसित  मस्तिष्क नहीं तो और क्या है ? आज जो कुछ हस्तिनापुर में मिली है,   यह भारतीय आस्था की जीत है. यह भारत के उदीयमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की जीत है, जिन्होंने  हस्तिनापुर  जैसे   उपेक्षित स्थल  जो भगवान कृष्ण से जुड़े थे उनकी खोज खबर ली. भारत के एजेंसी ७० वर्षों से सोये ही थे. उनको नींद से उठाने का कार्य इसी सरकार ने किया है.   अब भारत का इतिहास लेखन,  द्वारका और  हस्तिनापुर के बिना अधूरी है.


☝समुद्र में डूबे भगवान कृष्ण के राजमहल में प्राप्त सिरेमिक के बने मछली की कलाकृति.  यह द्वारका के विपुल सिरेमिक इंडस्ट्री को   हस्तिनापुर  तथा हड़प्पा- स्थल,  रोपड़ के सिरेमिक  इंडस्ट्री से जोड़ देती है.  यह चित्र इंटेलेक्टुअल प्रॉपर्टी राइट के अंतर्गत  इसके खोजकर्ता लेखक ने  सुरक्षित रखी  है. इसका व्यावसायिक और अन्य प्रयोग की अनुमति नहीं है.  

☝समुद्र में डूबा भगवान कृष्ण का राजमहल. यहां सिरेमिक से बने कला कृति का भरपूर प्रयोग मिली है. द्वारका की मेरी खोज में, मैंने रेडियो डेटिंग को  काल का मुख्य आधार माना है, जो ३१०० ईस्वी पूर्व की हैं. पुरातत्व में अनुमान के   आधार पर कुछ कहना एक त्रुटि और गलत परम्परा है. यह चित्र इंटेलेक्टुअल प्रॉपर्टी राइट के अंतर्गत  इसके खोजकर्ता लेखक ने  सुरक्षित रखी  है. इसका व्यावसायिक और अन्य प्रयोग की अनुमति नहीं है.     


☝हस्तिनापुर का सम्बन्ध विपुल सिरेमिक इंडस्ट्री से था. चित्र में सिरेमिक इंडस्ट्री के निर्मित चित्रित भांड देखे जा रहे हैं.  देखें दायें नीचे 

☝चित्रित प्राचीन मंदिर के खम्बे ( देखें दायीं ओर )



                                                                                ☝प्राचीन दीवार के अवशेष 


☝टेराकोटा "रिंग-वेल". यहीं पर गंगा नदी के रेत की धार मिली है जो यह प्रमाण देती है की यह स्थल गंगा नदी में डूब गई थी. महाभारत में ही हस्तिनापुर के गंगा नदी में डूब जाने की सूचना है. आज गंगा नदी, हस्तिनापुर के इस स्थल से  पांच किलोमीटर दूर बह रही है.   

☝अलंकृत खम्बा यहां देखी जा रही है.  

☝प्राचीन भवन के नींव  आज भी हस्तिनापुर में उपेक्षित हैं. चार वर्ष पूर्व हस्तिनापुर  के एक भ्रमण में मैंने यह नींव देखी थी  

☝हस्तिनापुर के इस स्थान विशेष को हल्के में न लें. यह स्थान हस्तिनापुर का सर्वाधिक ऊँचे टीले के रूप में  जानी जाती है.  हस्तिनापुर के फैले जंगल में,  इस  स्थान के नीचे - महाभारत के हस्तिनापुर का मुख्य राजदरबार   होने की सूचना वहां बैठे साधू संत देते हैं.  यही वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई थी. 


  ☝हस्तिनापुर में यह मान्यता है की इस स्थान पर कभी पांडवों ने भगवान शिव के मंदिर को स्थापित किया था. यह मंदिर राजमहल के पास ही थी.   १७६८ में किसी गुर्जर राजा ने इस प्राचीन मंदिर की सुरक्षा की. 

                          देखें द्वारका खोज पर विस्तृत रिपोर्ट हिंदी में :    Click for video presentation                                          

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