ज्ञानवापी
मत्स्य पुराण में विश्वनाथ मंदिर का वर्णन मिलता है. इसमें अविमुक्तेश्वर, विश्वेश्वर और ज्ञानवापी का उल्लेख किया गया है. इसके बाद स्कंदपुराण में भी उल्लेख किया गया है. स्पष्ट है ज्ञानवापी पुरातात्विक महत्त्व की सम्पदा है. शिवाजी महाराज को आगरा कारागार से छद्म रूप में राजा जय सिंह - प्रथम ने भाग निकलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. औरंगजेब ने इसका उत्तर बनारस के मंदिर को तोड़ कर दी. यह सर्वविदित तथ्य है की चाटुकार इतिहासकार इस बात को नहीं मानते. संयोग से मत्स्य पुराण में जिस ज्ञान वापी का वर्णन मिलता है वह यूरोप के प्रतिष्ठित भ्रमणकारी फोटोग्राफरों ने इसका चित्र संकलन ली है जो ब्रिटिश लाइब्रेरी, लन्दन में संगृहीत है.
कुछ लोग "प्लेस औफ वरशिप एक्ट १९९१" के आधार पर इस स्थान को पर्यवेक्षण के अधिकार से वंचित रखना चाहते हैं. यह १९९१ की वह कांग्रेस क़ानून है, जिसने काशी और मथुरा का रास्ता हिन्दू आस्थावान लोगों के लिए बंद कर दिया. यह "प्लेस औफ वरशिप एक्ट १९९१" के नियम के अंतर्गत प्रतिबंधित बताई जाती है. जबकी वस्तु स्थिति कुछ और है. इसी कानून की धारा ४ (३ ) ( ए ) ऐसे मंदिर, स्थान, स्थल को इस क़ानून से बाहर रखती है जो अत्यंत प्राचीन हों या पुरातत्व के विषय वस्तु हों. पुनः यह कानून की धारा ४ (३) ( डी ) कहती है अगर इस क़ानून के १५ अगस्त १९४७ से पहले किसी नियम के अन्तर्गत स्वामित्व सिद्ध होती हो तो वह स्थान भी इस क़ानून से बाहर रहती है. ज्ञान वापी मस्जिद पर बाबा विश्वनाथ का स्वामित्व है. यह स्वामित्व १५ अगस्त १९४७ के पूर्व से स्थित है जब १६६९ में औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़ कर "ज्ञान-वापी मस्जिद" बना दी. हिन्दू विधि में बाबा विश्वनाथ के संपत्ति का हस्तांतरण हो नहीं सकती. यह भारतवर्ष में मुसलमान आक्रमण से भी पहले इस मंदिर के होने की सूचना देती है. यह अत्यंत प्राचीन अवस्था है जो इस मंदिर को धारा ४ (३ ) ( ए ) के अनुसार इस कानून से बाहर रखती है.
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