"शिशुपाल वध" और द्वारका की अश्व किला

 


☝माघ रचित "शिशुपाल वध" में द्वारका के अश्व किला का विहंगम वर्णन अनायास नहीं मिलती. प्राचीन सूचना के आधार पर माघ ने द्वारका का विहंगम चित्रण खींचा है. जिसका भारतीय संस्कृत साहित्य में जोड़ा नहीं  

"होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो॥
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है"

अनमने  भाव से भारत के लोगों  ने  भगवान कृष्ण को जाना है. हमारे इतिहासकार तो कुछ बोलते ही नहीं.  हमारे कथावाचक और माघ   जैसे प्राचीन साहित्यकार  अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण का गुण गान करते हैं. भागवत के जरासंध वध के स्थान पर चेदिनरेश पराक्रमी  शिशुपाल का वध तो कोई साधारण मनुष्य कर नहीं सकता. माघ की "शिशुपाल वध" में भगवान कृष्ण के वीरतापूर्ण - तेजोमय स्वरूप की चित्रण प्राप्त होती है. बुद्धिमान माघ ने भगवान कृष्ण के लिए प्राचीन ऐतिहासिक  शब्द  सम्बोधन में  वराह , आदिवराह तथा  महावराह कहा है.  

भगवान  बलराम,  शिशुपाल को चेदि राज्य में वध की बात करते हैं. भगवान कृष्ण ने इस योजना का  समर्थन नहीं  किया. योजना बनती है शिशुपाल को   चेदि राज्य  से बाहर तथा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ  में वध करने की. माघ   की   "शिशुपाल वध"  की कथानक द्वारका से शुरू होती है.   भगवान कृष्ण,  युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भाग लेने प्रातः  काल  द्वारका से  निकल पड़े हैं.  माघ ने प्राचीन सूचना के आधार पर द्वारका  का अपरिमित सौंदर्य का वर्णन करने के क्रम में  "अश्व किला" का विहंगम वर्णन किया है.  ये वही अश्व किला है जिसकी डूबी अवशेष आज हम द्वारका में देखते हैं.  

राजसूय यज्ञ  में  पहुंचने   के लिए भगवान कृष्ण और इनकी विशाल सेना, जलयान से  यमुना नदी पार  कर रही है.  उधर यमुना नदी के पार  धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ  भगवान कृष्ण की प्रतीक्षा कर रहे हैं. वहां दोनों भाइयों का विहंगम मिलन होती है. युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण अब सीधे  सभा भवन पहुंचते हैं.        

भगवान  के मस्तिष्क में   "शिशुपाल वध" की पूर्ण योजना है. गुप्तचरों ने,  शिशुपाल की   शक्ति परीक्षण कर ली  है. उचित सेना के साथ, भगवान कृष्ण,   मात्र अवसर के खोज में हैं.  सभा भवन के बाहर भगवान कृष्ण की विशाल पराक्रमी सेना खड़ी है.  शिशुपाल बहुत ही कम सेना लेकर - इस यज्ञ में उपस्थित है.   "शिशुपाल वध" की यह निश्चित गुप्त कार्यक्रम युधिष्ठिर भी जानते हैं.  पर यह गुप्त मंत्रणा किसी भी साहित्य में उपलब्ध नहीं होती. गुप्तचर भगवान कृष्ण को कूटभाषा में शिशुपाल के सैनिक शक्ति का वर्णन सभा भवन में दे रहे  हैं.  गुप्त मंत्रणा  भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर के बीच भी हो रही  है. भीष्म ने युधिष्ठिर को सर्वप्रथम इस धरा धाम का सर्वप्रिय विशिष्ट,  भगवान कृष्ण  का पूजन करने का निर्देश दिया.   भीष्म  के इस आज्ञा से शिशुपाल  क्रोधित हो उठा.  युधिष्ठिर  ने भगवान कृष्ण  का  पूजन  प्रारम्भ की. शिशुपाल ने अब   भगवान कृष्ण को अपमानित करना शुरू किया.  युद्ध का निमंत्रण शिशुपाल ने दे दी.  अवसर की प्रतीक्षा में भगवान  श्रीकृष्ण ने किसी की नहीं सुनी. भगवान कृष्ण की सुदर्शन चक्र, जो तीक्ष्ण अस्त्र से सुसज्जित विशाल सेना का प्रतीक है,   ने शिशुपाल का वध कर डाला.  

शिशुपाल वंश,  भगवान कृष्ण  की वंशावली से मिलती है. शिशुपाल बुंदेलखंड से आते हैं. शिशुपाल, रुक्मी और जयद्रथ ने भगवान  कृष्ण के विरुद्ध एक गुट  बना ली थी. दुर्योधन के बहन का विवाह जयद्रथ के साथ हुई थी  शिशुपाल के वध होने पर सम्पूर्ण बुंदेलखंड और जयद्रथ के वध होने के साथ सम्पूर्ण सिंध- भगवान कृष्ण के हाथ में आ गई थी. यह हमारा इतिहास है.   इस बिखरे राष्ट्र के एकीकरण में भगवान कृष्ण का बहुत बड़ा योगदान है.    

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