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Showing posts from April, 2022

माता सीता के अधिकार की रक्षा

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  (भारत के समस्त स्त्री जाति के अधिकार की  रक्षा में   यह लेख तकनीकी रूप से न्याय के जानकार लोगों के लिए लिखी गई है. विषय वस्तु कहीं कठिन प्रतीत हो सकते हैं ) यह  सच है  प्राचीन भारत की न्याय विधि बहुत प्रतिभाशाली है.  यह  भारत की ऐसी महान ज्ञान तथा संपत्ति है जो पुस्तकों तक ही सीमित रह गई. जब इस प्राचीन न्याय सूत्र के जानकार न रहे तो हमारे न्याय व्यवस्था के निपटारे में हमें दूसरी न्याय सूत्र देखने पड़ते हैं. भारतीय संविधान का एक सुन्दर पक्ष यह है की प्राचीन न्याय सूत्र  भारत के न्याय प्रशासन के आवश्यक भाग रहे हैं.  यह अलग बात है इस प्राचीन न्याय सूत्र के जानकार अब रहे नहीं, इसलिए भारत के न्यायालय में प्राचीन न्याय सूत्र का उल्लेख नहीं दिया जाता.  जस्टिस मार्केण्डय काटजू   के बाद प्राचीन न्याय विधि में  पारंगत विद्वान नहीं मिलते. मनुस्मृति १०६ तथा १८७ एक जटिल न्याय सूत्र देती है जब पिता  की मृत्यु हो जाती है तो उसकी पूरी संपत्ति उसके "सपिण्ड" को प्राप्त होती है. आश्चर्य यह होती है, विश्व के सभ्य से सभ्य देश के न्याय प्रक्रिया ने प्राचीन मनु स्मृति के न्याय सूत्र को ही रखा है.

हड़प्पा समकालीन स्थल हस्तिनापुर : एक रिपोर्ट. Hastinapur Excavation- A Forgotten Site of the Harappan Era

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    ☝यह दृश्य है हस्तिनापुर का - जहां आज खुदाई चल रही है  भारतीय प्रजा की आस्था हस्तिनापुर में चरम अवस्था में है.  १९५० में भारत सरकार ने डॉ बी. बी. लाल के नेतृत्व में इस स्थल की खुदाई परीक्षण की थी. जो सामान यहां से प्राप्त हुए, वे काफी चौंकाने  वाले थे. इस नई खोज से तत्कालीन भारत सरकार असमंजस में पड़ गई. भारत के विभ्रमकारी इतिहास,  जो इस्लामिक आक्रमणकारियों को महिमा मंडित करने के  विचारधारा में लिखे गए थे,  हिलने लगे. दिल्ली का इंद्रप्रस्थ जिसे पांडवानी किला भी कहते हैं तथा हस्तिनापुर, महाभारत के साक्ष्य को जीवंत कर रहे थे.    नेहरू तथा अबुल कलाम आजाद जो उन दिनों क्रमशः भारत के प्रधानमंत्री तथा शिक्षा मंत्री थे, ने इस खुदाई को बंद करवा दी. कोई सत्तर वर्षों तक  भारत की आत्मा हस्तिनापुर  के टीले में  दबी रही.  यह अयोग्य शासक को चुनने का प्रतिफल थी.   नई सरकार ने करवट ली. सत्तर वर्षों के बाद, हमारे यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी  हस्तिनापुर में खुदाई करवा रहे हैं.   कोई ५०० करोड़ रुपये की बजट मात्र हस्तिनापुर के खुदाई के लिए आवंटित की गई है. ग्रेटर नोएडा से पुरातात्विक संस्थान की ए

Bhagwan Krishna- The Ultimate Management Guru.

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  In the Mandukya Upanishad there is an important thought process on the Human Resource Development. This highlights the required area of the "Learning & Development". This is a skill, which hits the "Competency Mapping" in the "Leadership Development". The Mandukya Upanishad, starts this brain storming session with  a story of two frogs. One frog living in "Ocean", falls inside a small "Well", where another frog is there. The "Ocean" frog speaks about the wisdom of the "Ocean". The "Well" frog who has never seen "Ocean", starts joking - is your "Ocean" is such vast then this  "Well"? The "Ocean" and the "Well" demonstrate the different learning skill of people. The Modern Human Resource practice, unfortunately, centres around the "Well". It has not yet seen the vastness of   the "Ocean". I shall demonstrate here how the Indian wisdom

जनकपुर

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अयोध्या को जनकपुर से रेल मार्ग से जोड़ने की अदम्य इच्छा शक्ति साधारण नहीं है. यह पुरुषार्थ मांगती है.  इस माह,  २ अप्रैल को जनकपुर,  भारत से जुड़ गई.  यह सांस्कृतिक बंधन अत्यंत प्राचीन है. जनकपुर ने १९८८ में यूनेस्को से  सीता माता के प्राचीन परिसर को सुरक्षित रखने का आग्रह किया था. भारत की अयोध्या चूक कर गई. इस देश में विभ्रम चल रहा था की भगवान राम और उनका  जन्म स्थान सत्य है या मिथक. पर जनकपुर की विचार दृष्टि स्पष्ट थी. अयोध्या के राम और जनकपुर की माता सीता के विवाह मंडप को जनकपुर ने अबतक सुरक्षित रखा है. यह इसलिए हो सका क्योंकि नेपाल ने माता सीता को भुलाया नहीं,  वहीं भारत ने भगवान राम को अयोध्या में ही भुला दिया. यह रेलमार्ग एक दुःसाहस है - जो मात्र भारत ही कर सकता है. भारत के जयनगर  से जनकपुर की यात्रा सुन्दर धान के लहलहाते खेतों से गुजरते हुए नेपाल में वैदेही स्टेशन पर रुकती है. माता सीता का दूसरा नाम वैदेही है. वैदेही और जनकपुर के बीच के रेल खंड अनेक ऐसे स्थलों से गुजरते  हैं जो रामायण काल से जुड़े हैं.   यहां नेपाल के सरकारी पुरातात्विक विभाग ने  सीता माता  के समय के अनेक पुरावशेषो

भारत की इतिहास परम्परा और आस्था

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अश्व-दुर्ग : समुद्र में डूबी भगवान कृष्ण की अद्वितीय द्वारका

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  विकराल  गर्जना  करती समुद्र. यह अमावस की रात में और भी भयावह होती है.  लेकिन  भगवान कृष्ण की कृपा से  हम इस भयावह बंधन  को पार कर जाते हैं. समुद्र अन्वेषण का इससे सुन्दर समय नहीं. समुद्र में डूबे विशाल मानवकृत भवन ढाँचे,   समुद्र के ऊपर एक तरंगित ऊर्जा  छोड़ती है. फिज़िक्स इसे इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडियोएक्टिव रेडिएशन कहती है. नंगी आँख से इसे हम देख नहीं सकते. पर सेटेलाइट इस  तरंगित ऊर्जा को रात में देख लेती है. अमावस की रात अथाह  काले समुद्र  में सफ़ेद तरंगित ऊर्जा,  नीचे भवन होने का सबल प्रमाण देती है.  हमने  उस जगह को चिन्हित किया है. सुबह की प्रतीक्षा है,  जब भगवान सूर्य - प्रबल प्रकाश लेके आएंगे. प्रबल प्रकाश में,  हम  उसी चिन्हित जगह,  एनालॉग टेक्नोलॉजी की सहायता से कोई १०० फ़ीट समुद्र के नीच  पहुंचते हैं. हमारे सामने एक   विस्मयकारी संसार खड़ी है. यह भगवान कृष्ण की प्राचीन समुद्र में डूबी द्वारका नगर की अश्व किला है.   अश्व किला इसलिए कही जाती है क्योंकि समतल भूभाग में अश्व के आकार की यह किले की दीवार है. यह दीवार आधुनिक "प्लास्टर्ड" दीवार से भी कहीं अधिक सुन्दर और मजबूत ह