अश्व-दुर्ग : समुद्र में डूबी भगवान कृष्ण की अद्वितीय द्वारका
विकराल गर्जना करती समुद्र. यह अमावस की रात में और भी भयावह होती है. लेकिन भगवान कृष्ण की कृपा से हम इस भयावह बंधन को पार कर जाते हैं. समुद्र अन्वेषण का इससे सुन्दर समय नहीं. समुद्र में डूबे विशाल मानवकृत भवन ढाँचे, समुद्र के ऊपर एक तरंगित ऊर्जा छोड़ती है. फिज़िक्स इसे इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडियोएक्टिव रेडिएशन कहती है. नंगी आँख से इसे हम देख नहीं सकते. पर सेटेलाइट इस तरंगित ऊर्जा को रात में देख लेती है. अमावस की रात अथाह काले समुद्र में सफ़ेद तरंगित ऊर्जा, नीचे भवन होने का सबल प्रमाण देती है. हमने उस जगह को चिन्हित किया है. सुबह की प्रतीक्षा है, जब भगवान सूर्य - प्रबल प्रकाश लेके आएंगे. प्रबल प्रकाश में, हम उसी चिन्हित जगह, एनालॉग टेक्नोलॉजी की सहायता से कोई १०० फ़ीट समुद्र के नीच पहुंचते हैं. हमारे सामने एक विस्मयकारी संसार खड़ी है. यह भगवान कृष्ण की प्राचीन समुद्र में डूबी द्वारका नगर की अश्व किला है. अश्व किला इसलिए कही जाती है क्योंकि समतल भूभाग में अश्व के आकार की यह किले की दीवार है. यह दीवार आधुनिक "प्लास्टर्ड" दीवार से भी कहीं अधिक सुन्दर और मजबूत है. इसी अश्व किले में विशाल नगर मिली है. यह नगर द्वारका के सुन्दर नगरों में से एक थी. इस नगर में मकान सीधे रेखा में बने हैं. यह हरिवंश पुराण के वर्णन के अनुसार ही है. भगवान कृष्ण के द्वारका की सुनियोजित नगर प्रणाली को देख कर ही हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के नगर निर्माण हुए. इसलिए हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की अनेक मुद्रायें , द्वारका और भगवान कृष्ण का ही वर्णन करती हैं. इसी अश्व किले में सफ़ेद पत्थर से निर्मित एक विशाल भवन है. इस भवन के बाहर "कट वाल्स" बने हैं, ठीक वैसे ही हैं, जो जैसलमेर के किले में देखते हैं. कोई ५००० वर्षों से ये भवन यहां पडी है. भारत सरकार इसकी खोज खबर नहीं करती. इसके दो कारण हैं. या तो धन का अभाव है या ७५ वर्षों के मानसिक गुलामी में हमने ऐसे अयोग्य लोगों को रखा है जो भगवान कृष्ण को मिथक मानते हैं तथा कुछ नया सोच नहीं सकते.
☝इस "अश्व -दुर्ग" में सफ़ेद पत्थर से निर्मित विशाल भवन है जो ऊपर की ओर है. यह भवन "कट वाल्स" से घिरे हैं. इस सम्पूर्ण परिसर को विशाल दीवार से घेर कर रखी गई है. इस चित्र में विशाल दीवार को बांई ओर देखें. यह आधुनिक प्लास्टर्ड दीवार से भी सुन्दर है
☝इसी अश्व किले में विशाल नगर मिली है. यह नगर द्वारका के सुन्दर नगरों में से एक था. इस नगर में मकान सीधे रेखा में बने हैं. इन मकानों पर समुद्री वनस्पति जमा हो गई हैं. इन समुद्री वनस्पतियों ने भगवान कृष्ण के इन भवनों को सुरक्षित रखा है
चेतावनी : सम्पूर्ण चित्र सामग्री पेटेंट औऱ इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के अंतर्गत सुरक्षित हैं. इसका किसी भी प्रकार से व्यावसायिक प्रयोग या अन्य प्रयोग वर्जित है. लेखक द्वारका के खोजकर्ता हैं. लेखक से संपर्क birendrajha03@yahoo.com पर की जा सकती है.
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