रामसेतु
भारत और लंका के ऐतिहासिक स्मृति को जोड़ने वाली रामसेतु, भारत में संदेह की दृष्टी से देखी जाती है . वहीं श्री लंका की सरकार इसे ऐतिहासिक मानती है. दो सरकार दोनों के अलग-अलग दृष्टीकोण. रामसेतु पर जो वैज्ञानिक खोज होनी चाहिए थी, वह नहीं की गई. यह रुचि और सामर्थ्य का अभाव था. हमारी कहानी शुरू होती है रामायण के काल खंड से जब भगवान राम की विशाल सेना ने लंका की यात्रा की. लंका जाने के लिए पुल का निर्माण किया. लंका को युद्ध में जीता. तत्पश्चात भगवान राम, लंका से लौटने के बाद सामरिक सुरक्षा में पुल को तोड़ दी .
आज की तकनीक इतनी उन्नत है की हम बहुत कुछ इसके विषय में जान सकते हैं। मैंने प्रारंभिक जांच सेटेलाइट से की है। जिसकी सूचना अत्यंत चकित करने वाली है. यह एक नई खोज है जिसकी जानकारी वैज्ञानिक समुदाय को नहीं है. सेटेलाइट की सूक्ष्म दृष्टि ने भारत से लंका को जोड़ने वाली एक प्राचीन स्थल मार्ग पकड़ी है. यह प्राचीन स्थल मार्ग रामायण काल, से भी अत्यंत प्राचीन काल से अवस्थित थी। इसी प्राचीन स्थल मार्ग में, सेटेलाइट ने पुनः इसमें १६ स्तम्भ पिलर के चिन्ह पकड़े हैं. यह स्तम्भ पिलर - उसी प्राचीन स्थल में सीधे रेखा में हैं, परन्तु "जिग -जाग" रूप में व्यवस्थित हैं. ताकी समुद्र की लहर स्तम्भ को बहा न दे । "जानु -संधि" का प्रयोग बांस से निर्मित वास्तु निर्माण के लिए प्रशस्त मानी जाती है जिसमें बांस एक दूसरे से जुड़े हुए रहते थे। अत्यंत प्राचीन काल में बांस का प्रयोग इस तरह के पुल निर्माण तथा बंदरगाह के जेट्टिज के निर्माण में की जाती रही हैं . रामसेतु, के स्तम्भ के रूप में लकड़ी तथा लकड़ी के स्तम्भ पिलर पर बांस पुल का निर्माण की गई थी, जिस पर पैदल सेना चल सके. "जानु -संधि" आधारित यह पुल निर्माण की चर्चा रामरक्षास्त्रोत्र ( स्त्रोत्र - 9 ) में मिलती है . यह श्रृंखला भारत से लंका तक बनाई गई थी। सेटेलाइट ने पुनः, पिलर - स्तम्भ खड़ा रखने की जगह देखी है, जो आज अंदर से खाली हो चुकी है। समय के काल में लकड़ी के पिलर स्तम्भ सड़ गई। शेष रह गई पिलर को बाँध कर रखने वाली चूने पत्थर और मृत कोरल की मजबूत घेरे बंदी। ये चूने पत्थर और मृत कोरल के अवशेष थोड़े - थोड़े दूरी पर एक सीधे रेखा में मिलती है। जिस मृत कोरल का प्रयोग रामसेतु के निर्माण में की गई है , वे संभवतः लक्षद्वीप या ओखा से रामायणकाल में लाई गई थी, क्योंकि इन मृत कोरल की आयू ६०००० वर्ष से भी अधिक पुरानी है। इतनी पुरानी कोरल भारतवर्ष में मात्र लक्षद्वीप या ओखा में ही मिलती है। अतः यह स्पष्ट होती है की रामसेतु एक मानवीय पुल है - कोई कल्पना नहीं।
आवश्यकता है सरकारी एजेंसी का दृष्टिकोण बदलने की । हमें नहीं भूलना चाहिए २००७ में सरकारी एजेंसी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग , ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दी थी - जिसमें भगवान राम, रामायण और उनके सेतु को मिथक मानी गई थी। सरकारी एजेंसी के कार्य करने के तरीके में जंग लग चुकी है। यह तब तक नहीं बदलेंगे जब तक राजनैतिक इच्छा नहीं होगी।
☝ ये खम्बे रखने के पॉकेट सीधे रेखा में तो हैं परन्तु तेज लहर तोड़ न दें इसलिए "जिग -जाग" अवस्था में निर्मित हैं ( Image protected under the Copyright Law ) .
शोधपूर्ण आलेख।
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