समुद्र विज्ञान और एनालॉग तकनीक में हमारी द्वारका
लेखक : वीरेंद्र के झा
( लेखक द्वारका के खोजकर्ता हैं. सम्पूर्ण चित्र सामग्री लेखक के अधिकार में सुरक्षित है. इसका व्यावसायिक या अन्य उपयोग बिना लेखक के अनुमति के निषिद्ध है. लेखक से संपर्क निम्न ईमेल में की जा सकती है: birendrajha03@yahoo.com ).
स्वतंत्रता के पश्चात भारत के इतिहास लेखन का जो परिमार्जन होनी चाहिए थी, वह नहीं की गई. दुर्भाग्य से आक्रांता इस्लामिक हमलावर को महिमा मंडित करने के प्रयास में हम अपने मूल इतिहास को खो बैठे. अयोध्या और मथुरा को भारत के इतिहास से कभी नहीं जोड़ी गई. यह भारतीय जनमानस को भ्रमित करने का कुत्सित मार्ग था. भगवान राम और भगवान कृष्ण यद्यपि आज जन जन में हैं. यह इसलिए है की भारत के महान प्रजा ने इन्हे कभी मिथक माना ही नहीं. ब्रिटिश उपनिवेशवाद में ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार में भगवान राम और भगवान कृष्ण मिथक हो गए. स्वतंत्रता के बाद, सिकुलर छवि रखने के लिए भगवान राम और भगवान कृष्ण को भुला दी गई. केंद्र सरकार के स्तर पर एन.सी. ई. आर.टी के इतिहास के पाठ्य पुस्तक यही अपमानजनक धारणा वर्षों तक बना कर रखे, जो आज तक यथावत है. विषाक्त जहर की तरह हमारे विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग, ज्ञान के बजाय एक मिथ्या इतिहास परोस रहे हैं.
भगवान कृष्ण की द्वारका की खोज अनायास नहीं है. कोई १८ वर्षों का श्रम साध्य यह खोज विश्वविद्यालय तथा भारत सरकार के संस्था में संभव नहीं थी. यह वर्तमान विश्वविद्यालय की दयनीय दशा है. १९८० में डॉ. अस .आर . राव ने द्वारका खोज पर एक साहसिक प्रयास किया था. यद्यपि इस खोज से अधिक कुछ प्राप्त न हो सका. डॉ. अस .आर . राव के बाद द्वारका खोज का साहस ख़त्म हो चुकी थी. अब भगवान कृष्ण की, अवधारणा सरकारी व्यवस्था, में बहुत ही अपमान जनक थी. कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च ने यह कहते हुए डॉ. अस. आर. राव के खोज को रुकवा दिया की यह प्रयास एक मिथक भगवान कृष्ण और उनकी द्वारका खोजने का दिशा हीन प्रयास है. इस अपमानजनक व्यवस्था में, गहरे समुद्र में द्वारका खोजने का विचार कौन करेगा !
१९८० में समुद्र विज्ञान इतना उन्नत नहीं थी. स्वयं डॉ राव ने कई घटना का उल्लेख किया है जिसमें कच्छ की खाड़ी के अंदर गोताखोर को कुछ भी अंदर दृश्य नहीं होती थी. स्पष्ट है हमें एक नई तकनीक को खोजनी थी जिसमें समुद्र के अंदर के दृश्य को सहजता से देखा जा सके. सेटेलाइट का प्रयोग इसके पहले, समुद्र के अंदर कभी नहीं की गई थी. अब तक सेटेलाइट विज्ञान या समुद्र विज्ञान यह मानती थी की, सेटेलाइट समुद्र के अंदर नहीं देख सकती है. इस धारणा को खंडित की गई और विज्ञान ने "एनालॉग तकनीक" के विशाल रूप को देखा, जिसमें सेटेलाइट की दृष्टी पहले से अत्यंत स्पष्ट हो चुकी है. यद्यपि यह तकनीक पेटेंट के स्तर पर है. इस पर अधिक कुछ कहना उचित ना होगा. "एनालॉग तकनीक" समुद्र तथा सेटेलाइट विज्ञान में एक हलचल है. इसने एक ही झटके में अनेक भ्रांतियों को तोड़ डाली है.
द्वारका में अनेक डूबे हुए पुरातात्विक अवशेष मिले हैं जो भगवान कृष्ण के साक्षी रहे हैं. राजमहल, विशाल किला, कई पोत तथा मानव जनसमुदाय के रहने के स्थान इस एनालॉग तकनीक से खोज निकाली गई है. रेडियो डेटिंग के आधार पर, अब यह स्पस्टतः कही जा सकती है की वर्तमान सिंधु घाटी की सभ्यता के कोई सौ वर्ष पहले, द्वारका अस्तित्व में आई थी. इस खोज ने एक ही झटके में कई अनर्गल प्रलापों को विराम दी है.
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