चंद्रभागा : भगवान कृष्ण और उनका सूर्य मंदिर
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Chandragupta Maurya -1516 BCE; Mahabharat War -3138 BCE; Dwarika - 3200 BCE
हमने अपने भारत और कृष्ण को कम ही जाना है. मोहनजोदड़ो का प्रख्यात स्नानागार ईसाइयों की दृष्टि में मात्र स्नानागार है . लेकिन ईसाइयों से अधिक हानि इतिहास तथा पुरातत्व में कार्य करने वाले लोगों ने की है. पाकिस्तान समर्थित "हड़प्पा.कॉम" तथा भारत के सोसियल मीडिया समूह "हड़प्पन आर्कियोलॉजी" भारत तथा इसके प्राचीन सभ्यता के विषय में अनर्गल विष वमन करते हैं. अबोध भारतीय चुपचाप इसे सहन करते हैं .
भारत वर्ष में सूर्य मंदिर बनाने का प्रचलन भगवान कृष्ण ने शुरू की. मोहनजोदड़ो का प्रख्यात स्नानागार प्राचीन सूर्य मंदिर का कुंड है न की कोई स्नानागार. यह सूर्य मंदिर वहीं था जहॉं आजकल के बौद्ध इसे बौद्ध स्तूप बतलाते हैं. यह मंदिर गुजरात के मोढ़ेरा या बिहार स्थित औरंगाबाद के सूर्य मंदिर जैसा ही था.
मोहनजोदड़ो का सूर्य मंदिर भगवान कृष्ण के द्वारा स्थापित १२ सूर्य मंदिरों में एक था. मोहनजोदड़ो का सूर्य स्तम्भ बनारस के उत्तरार्क सूर्य स्तम्भ की तरह ही गोल स्तम्भ है . १२ सूर्य मंदिरों में कोणार्क का सूर्य मंदिर तथा प्राचीन मगध के पांच सूर्य मंदिर अत्यंत प्राचीन हैं. १३वीं शताब्दी ईस्वी सं में प्राचीन निर्मित क्षेत्र में मंदिर कोणार्क बनाई गई.
मोहनजोदड़ो के सूर्य कुंड के पास यह प्राचीन मंदिर आज भी खड़ी है . यह कोई सारनाथ की तरह बौद्ध स्तूप नहीं है और न ही यहां कोई बुधदेव के अस्थि अवशेष हैं . उड़ीशा स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर, मूलस्थान ( मुल्तान - पाकिस्तान ) स्थित सूर्य मंदिर , बनारस स्थित लोलार्क सूर्य कुंड; पाटलिपुत्र स्थित सूर्य मंदिर तथा औरंगाबाद स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण एक ही समय भगवान कृष्ण ने शाम्ब के स्वास्थ्य लाभ हेतू किये थे . इन सबों में कोणार्क का सूर्य मंदिर सबसे अधिक विशिष्ट है . प्राचीन निर्मित सूर्य मंदिर का रूप समय समय में तत्कालीन राजाओं ने भव्यता प्रदान की.
सूर्य मंदिर कोणार्क भगवान कृष्ण की पहली स्थापित सूर्य मंदिर है . ब्रह्मा पुराण , तीर्थ चिंतामणि , कपिल संहिता , पूरी के जगन्नाथ मंदिर में "मदल पंजी" , प्राची माहात्म्य में विस्तृत विवरण प्राप्त होती है . भविष्य पुराण और शाम्ब पुराण में इसका विस्तार इतिहास मिलती है . वृहत संहिता में भी इसकी विस्तृत सूचना है . उड़ीसा के सरला महाभारत में यहां तक वर्णन है की सरला दास जी ने लिखा है की उन्होंने अपने आँख से कोणार्क सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना होते देखी है . अलबेरुनी का भास्कर तीर्थ या "अरकू तीर्थ" कोणार्क ही है . मदल पंजी में यह दर्ज है की प्राचीन मंदिर निर्मित क्षेत्र में १२३८ ईस्वी सं में मंदिर का निर्माण शुरू की गई जो २८ वर्षों तक चली. वाचस्पति मिश्र ने तीर्थ चिंतामणि में भी इस मंदिर का सजीव वर्णन किया है. इस्लाम के आक्रमण के बाद यह व्यवस्था नष्ट हो गई .
यहां एक विशिष्ट बात ध्यान देने की है जब मोढ़ेरा , मुल्तान , लोलार्क सूर्य कुंड, औरंगाबाद तथा कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण भगवान कृष्ण करवा रहे थे, ये बनाने वाले सभी उड़ीशा के शिल्प कर्मी थे . इसका विशिस्ट प्रमाण औरंगाबाद से प्राप्त शिलालेख बताते हैं.
प्रकरण प्राप्त होती है उड़ीशा के चंद्रभागा समुद्र तट पर कभी भगवान कृष्ण अपने पुत्र शाम्ब के साथ यहां आये थे . यहां चिकित्सा और सूर्य पूजा दोनों की गई थी . विष्णु पूजा की प्राचीन परम्परा उस समय उड़ीशा में थी . परन्तु भगवान कृष्ण ने यह अनुभव किया की वैद्यक चिकित्सक जो सूर्य पूजा के माध्यम से चिकित्सा करते हों उनके हाथ में इन सभी सूर्य मंदिरों की व्यवस्था दे दी जाय. ये चिकित्सक जो सूर्य पूजा के विशिष्ट विद्वान थे, शाकद्वीप से लाये गए थे . गुजरात , बिहार , उड़ीशा , में जो शाकलद्वीप ब्राह्मण प्राप्त होते हैं वे यही ब्राह्मण शाखा है. कई समालोचकों ने खासकर के ईसाई इतिहासकारों ने इसे ईरान से लाया जाना बताते हैं. यह गलत है. प्राचीन शाकलद्वीप के प्रधान राजा मेधातिथि हैं जो ऋषि कण्व के पुत्र थे. इनका आश्रम हरिद्वार स्थित पवित्र भूमि में स्थित थी . ये शाकल द्वीपी ब्राह्मण मगध पहुंचने के उपरान्त मगा अर्थात मगध के ब्राह्मण भी कहलाये. चाहे उड़ीशा हो या बिहार इस शाकल द्वीपी ब्राह्मण में एक विशेष गुण पाई जाती है ये चिकित्सा शास्त्र के प्रति इनकी रुझान और दक्षता कुछ अधिक होती है.
संपूर्ण उड़ीशा भगवान कृष्ण के इस पदापर्ण को भूलता नहीं . शुक्ल पक्ष के दशवें दिन संपूर्ण उड़ीशा भगवान कृष्ण और उनके पुत्र शाम्ब को स्मरण करते हैं जिसे शाम्ब दशमी के नाम से आज उड़ीसा में इसे जानी जाती है. यह सुखद अनुभव है की द्वारिका डूबने के पश्चात जगन्नाथपूरी को भगवान कृष्ण ने अपना दूसरा घर बनाया उधर दूर मुल्तान में स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी . भगवान कृष्ण के द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर आज कचरे का ढेर है तथा वहां मस्जिद बना दी गई है . जो शाकल द्वीपी ब्राह्मण वहां पूजा अर्चना किया करते थे ये या तो खत्म कर दिए गए या मुसलमान बना दिये गए.
शाम हो चली है चंद्रभागा के सुरम्य तट पर कोणार्क के विहंगम सूर्य मंदिर को देख कर भगवान सूर्य देव अस्त हो रहे हैं. पुनः सुबह की प्रतीक्षा है जब इस भारत वर्ष की भूमि से भ्रामक इतिहास के बादल हट जाएगी .
मोहनजोदड़ो मंदिर के ऊपर का हिस्सा . प्राचीन बौद्ध स्तूप में ऊपर इस तरह के ढांचे नहीं मिलते. बनारस का उत्तरार्क सूर्य स्तम्भ ( बकरिया सूर्य कुंड ) , मोहनजोदड़ो के मंदिर की तरह गोल स्तम्भ है .
भगवान कृष्ण ने लोलार्क सूर्य कुंड के साथ काशी के प्राचीन घाट पर 12 सूर्य मंदिर स्थापित की थी . काशी खंड इसकी विस्तृत सूचना देता है . इस्लाम के आक्रमण में ये मंदिर नष्ट हो चुकी हैं . लोलार्क कुंड के साथ उत्तरार्क सूर्य स्तम्भ के साथ एक सूर्य पीठ मात्र शेष बचे हैं . बनारस का उत्तरार्क सूर्य स्तम्भ ( बकरिया सूर्य कुंड ) , मोहनजोदड़ो के मंदिर की तरह गोल स्तम्भ है .
भगवान कृष्ण निर्मित मुल्तान स्थित सूर्य मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बना दी गई . यह इस्लाम का दूसरा वह घृणित चेहरा है . जिसने अयोध्या जैसे विवाद में बाबर द्वारा तोड़े मंदिर को लोग झुठला रहे थे - राम को मिथ्या और कपोल कल्पना मान रहे थे.
अद्भुत जानकारियां प्रस्तुत की हैं आपने I
ReplyDeleteधन्यवाद्
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