भारत सरकार ने अंततः महाभारत के काल समय पर मुहर लगा दी है . इसके साथ ही कोई २०० वर्षों से ऊपर चल रही महाभारत, उसके काल , स्थल तथा भारत के आस्था ह्रदय कृष्ण पर अपमानजनक मिथक टिपण्णी पर विराम लग गई है. भारत सरकार ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेरिटेज कंज़र्वेशन के नाम से संस्थान बनाई है जो महाभारत के मुख्य स्थल हस्तिनापुर में बनाई जाएगी. यह वृहद् स्तर पर १९५० से छोटे पर महत्त्वपूर्ण उत्खनन के बाद कार्य करेगी. यह बताना आवश्यक है डॉ बी बी लाल ने पचास के दशक में हस्तिनापुर की खुदाई की थी. उनकी बहुत सारे खोज और रिपोर्ट को कोई ७० वर्षों तक कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने दबाये रखा. ये खोज इतने महत्त्वपूर्ण थे की सरकार ने इसे कभी उजागर किया ही नहीं . यूरोप के लोगों ने अपमानजनक रूप से भगवान कृष्ण के काल समय को मिथक माना था. इसके पीछे आर्य आक्रमण सिद्धांत को ज़िंदा रखने की मंशा थी. अतः ब्रिटेन के लिए आवश्यक था की कृष्ण के समय को मिथक मान ली जाय . यह घनघोर षड़यंत्र भारत के लोग समझ नहीं पाए .
आइये भगवान कृष्ण के हस्तिनापुर चलें जहां उन्होंने महाभारत समय के महत्त्वपूर्ण क्षण व्यतीत किये हैं . हस्तिनापुर चलने के पहले कुछ चीजें जाननी आवश्यक है . डॉ बी बी लाल ने जब इसकी खुदाई की थी , वे एक सरकारी सेवक थे . सरकार से मिले दिशा निर्देश के अनुसार "कृष्ण की सभ्यता" कहने के बजाय उन्होंने इसे " पेंटेड ग्रे वेयर" कहा. यह अवश्य ही भगवान कृष्ण और उनके समय के साथ की गई एक अक्षम्य अपराध थी. जब बी बी लाल रिटायर कर गए तब उन्होंने अपने रूख में परिवर्तन करते हुए इसे महाभारत काल की सभ्यता कही . "पेंटेड ग्रे वेयर" या "कृष्ण काल" के समय सीमा जो उन्होंने बताई है वह गलत है . यह काल समय मैक्समूलर द्वारा निर्धारित चंद्र गुप्त के काल समय ३२३ ईस्वी पूर्व मान कर काल निर्णय की है . सत्य यह है की चन्द्रगुप्त मौर्य का समय १५१६ ईस्वी पूर्व है. यही गलत काल निर्णय दुर्भाग्यवश डॉ अस आर राव साहब ने भी कर ली. द्वारिका से प्राप्त प्राचीन उपादान का काल निर्णय मौर्य के गलत काल के आधार पर कर ली गई.
हस्तिनापुर - द्वारिका - मोहनजोदड़ो एक समय के हैं . हस्तिनापुर में विशाल पैमाने पर प्राचीन चीजें मिली हैं जो आप यहां देखेंगे . संभवतः मीडिया में पहली बार इन प्राचीन चीजों को दिखाई जा रही है. जिसे जान बूझ कर के दबा कर रखी गई थी. सबसे नीचे के लेयर में कृष्ण काल की सभ्यता प्राप्त होती है . ठीक उसके ऊपर यौधेय काल की समय सीमा शरू होती है. यौधेय युधिष्ठिर पुत्र हैं . इनके वंशजों ने बहुत लम्बे समय तक भारत में राज किया है. हस्तिनापुर में बहुत बड़े पैमाने पर यौधेय की मुद्रा और पंच मुद्रा प्राप्त की गई है . कृष्ण काल में अश्व के विशाल प्रमाण प्राप्त हैं . महाभारत काल में ही भगवान कृष्ण के भाई श्री नेमिनाथ जी की बहुत प्रतिष्ठा थी. स्वयं हस्तिनापुर में नेमिनाथ जी के प्राचीन भग्न प्रतिमा प्राप्त हैं . हस्तिनापुर में ही मोहन जोदड़ो की तरह ओंकार लेखन का प्रचलन है . यही ओंकार लेखन द्वारिका में भी प्राप्य है.
मोहनजोदड़ो की तरह हस्तिनापुर में ड्रैनेज और सीवर लाइन प्राप्त होते हैं. यह स्पष्ट करता है की द्वारिका का सुन्दर नगर निर्माण योजना का ही प्रभाव हस्तिनापुर तथा मोहनजोदड़ो में है. द्वारिका एक केंद्र शासित राजधानी है जहां से समूचे शासन व्यवस्था का कार्य देखी जाती थी. यह वर्तमान भारत, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान की राजधानी थी. दक्षिण भारत के द्रविड़ प्रदेश ( वर्तमान तमिल नाडू ) भगवान कृष्ण के शासन के अंतर्गत थी. भगवान कृष्ण के निर्देश और आदेश पर द्रविड़ प्रदेश के राजा अपनी सेना के साथ कुरुक्षेत्र के मैदान में पाण्डव के पक्ष में उपस्थित हुए थे. पांडियन और चेरी ये दो प्रधान द्रविड़ प्रदेश के राजा थे जो भगवान कृष्ण के अधीन यहां दक्षिण भारत में शासन देखते थे. यह मूर्खता की हद है की ६० के दशक में द्रविड़ मुनित्र कड़गम ने अपने क्षणिक राजनैतिक लाभ के लिए यह जोर शोर से प्रचारित किया था की हड़प्पा में १५०० ईस्वी पूर्व में कभी तमिल रहते थे और उन्हें मार कर दूर तमिल नाडू भेज दी गई . तमिल नाडू के स्कूली पाठ्यक्रम में यही पढाई जाती है . यह चरम मूर्खता का विष वमन था . भारत को दो सांस्कृतिक प्रदेश में तोड़ने का ब्रिटिश षड़यंत्र तमिल नाडू के लोग नहीं समझ पाए. वहीं कर्णाटक और आंध्र प्रदेश की जनता अधिक समझदार और जागरूक थी. वे द्रविड़ मुनित्र कड़गम के इस बहकावे में नहीं आये. उन्होंने हनुमान जी के आदर्श की रक्षा की जो कर्णाटक और वर्तमान आंध्र प्रदेश की सीमा से आते हैं .
अब यह आवश्यक हो चली है की मैक्समूलर के बताये गए इतिहास क्रम को परिवर्तन करने के लिये. यह परिवर्तन अगर न की गई तो आगे आने वाले कई वर्ष विभ्रमित रहेगी. चन्द्रगुप्त मौर्य का समय ३२३ ईस्वी पूर्व से हटा कर १५१६ ईस्वी पूर्व और गौतम बुद्ध का समय ५०० ईस्वी पूर्व से हटा कर १८६४ ईस्वी पूर्व में रखनी पड़ेगी जैसे काल क्रम हमारे महाभारत और पुराण में मिलती है.
अब प्रतीक्षा है द्वारिका की . हम आशावान हैं, हस्तिनापुर की तरह द्वारिका का भी सूरज निकलेगा.
Before moving keep this important age line handy for general observation:
1. Age of Chandragupta Maurya - 1516 BCE ( Not 323 BCE )
2. Age of Gautam Buddha - 1864 BCE ( Not 500 BCE )
3. Age of Dwarika ( Mahabharata ) - 3200 BCE
4. Age of the Mohen-Jo-Daro - 3100 BCE
For many years the Hastinapur ( 3200 BCE ) and the Dwarika ( 3200 BCE ) have remained central point of power in the Mahabharata. The Government of India conducted a small trial pit test in the 1950. This has revealed many important findings. This was assigned with a typical name- Painted Grey Ware ( PGW ). A bogus term to identify the glorious age of Bhagwan Krishna. The Government of India mostly hidden the record, as it was not interested in disturbing the then current understanding of the Aryan Invasion Theory. The Hastinapur site has given many findings - drain water system; ringwell; copper bowl; horse bones; horse figurine; ceramic pots; ancient Brahmi script ( of Youdheya age ) and many more. The Narendra Modi Government of India has attested the age of the Mahabharata. The 200 years of the mythical Mahabharata - now is the historical document & evidence. This may give shock - who looks Mahabharata as a mythical. The Government of India is establishing Indian Institute of Heritage Conservation at Hastinapur. The notification says, it attests the finding in 1950 and validates the age of the Mahabharata. This shall bring wide scale change in the current understanding of that age, of which the Mohen- Jo- Daro is an important part. This has also attested that the language and culture of the Mohen- Jo- Daro is from the late Vedic age. This has been widely demonstrated by Dr Jha and Dr Rajaram in their book- The Deciphered Indus Script - identifying the old Brahmi Script. Some more than 2000 seals have been deciphered by Dr Jha & Dr Rajaram, which are revolving around Krishna and the Mahabharata. The references are the Vedic literature, particularly the Nighantu and the Nirukta of Yaska. With this body of material, they take a broad look at what these seals have to say about the people who created them. This is particularly necessary in the light of a couple of highly publicized claims over the contents of the seals made in the last fifty years. One linguist has claimed that the language of the Harappans was Akkadian, a West Asiatic language. This claim, made without being able to read the writing, is not supported by their decipherment. The language of the seals is Vedic Sanskrit, with close links to Vedantic works like the Upanishads. For instance, there is a deciphered seal which contains the word "shadagama" (shat agama) - a reference to the six schools Vedantic knowledge. Another seal deciphers Vedic Omkar. This shows that they must already have been in existence with sound writing system. This was an important activity with a Central Authority, which was engaged in , script, writing and standards of weight common in all the Harappan cities. This Central Authority was Dwarika, now submerged under the sea at the Gulf of Kutch, some more than 400 feet under the water. This is only high sensible satellite, which has penetrated the sea bed and captured the important image from that site. This study was produced from the year 2000 to 2018 in the Discovery of Lost Dwarika. This was the site of Bhagwan Krishna mentioned widely in the Mahabharata and deeply related with the Hastinapur site.
The age of Krishna is looking through the ringwell. See also the Krishna age stone bricks downside the well. In 1954-55 The ASI, Government of India has given Official Recognition to the age of the Mahabharata. But this was not allowed by the political ministry of the Government of India. The ASI report says: "The Hastinapur excavation has yielded archaeological evidence about the truth of the story of the Mahabharata and that here at last is the recognition by "Official Archaeology" of the truth embodied in Indian traditional literature." (Cited by Editor -A Ghosh, p 3, Ancient India - Bulletin of the Archaeological Survey of India - Numbers 10 & 11 - 1954-1955 ). Most of the Indians do not know this hidden truth.
The ringwell is exactly same size , type and design as found at the Mohen- Jo- Daro
A landscape of the ringwell found deep down
The Hastinapur has excellent sewer system - see the earthen sewer line.
The sewer engineering of the Hastinpaur
The Hastinapur has similar brick constructed drain line like the Mohen - Jo- Daro. The brick constructed drain line.
This appears brick made soak pit for disposal of the drain water.
The age of Krishna is seen here with perfect brick constructed house. This is mesmerizing of that age. See and feel the brick of Krishna age.
The previous picture in continuity is showing the depth of the building structure . In the Mahabharata there is description that the palace of the Hastinapur was destroyed by the Ganga flood. A person in this photograph is showing the flood mark of Ganga River. The top brick is the part of that Hastinapur Palace mentioned in the Mahabharata . The Omkar of the Hastinapur and the Omkar of the Mohen- Jo- Daro are shown here. The Dwarika also holds similar sign of the Omkar. In Kannada and Telegu , the ancient Omkar is written exactly just like the Hastinapur or the Mohen- Jo- Daro style . The Devanagri Omkar is changed to 90 degree. This symbolism was reported first by Dr Jha & Dr Rajaram in their book - The Deciphered Indus Script.
In the Mohen-Jo-Daro and the Hastinapur wide use of the Swastik sign is seen. Minds not applied that these important signs are from the late Vedic age ( 3200 BCE ) . The top seal is from the Mohen-Jo-Daro depicting the Panch-Swastik Mantras.
The age of Krishna at Hastinapur has seen strong evidence of horse. Last but not the least wide occurrence of the skeleton remains of the horse ( Equus Caballus ) found during the Mahabharata age. This animal presence during the Mahabharata age at Hastinapur is indeed significant. ( Third number is clay model of horse )
The horse in the age of Krishna ( 24 number )
The age of Krishna see wide use of ceramic pottery. Ceramic is known at Dwarika also
Bhagwan Krishna has respected the doctrine of the Jain Philosophy. His brother Sri Neminath Ji has received importance at the Hastinapur . The broken image of Sri Neminath Ji. At Dwarika also Bhagwan Krishna has constructed house dedicated in the honor of Sri Neminath Ji.
The age of Krishna looks Copper made bowl at Hastinapur. The age of Krishna looks large scale horse bones. This was reported by Dr BB Lal
This is the water fort of Bhagwan Krishna - made in white stone ( crane bird shape ). This is a fort which is bigger then the Jaisalmer fort in India. This is now submerged under the deep sea water. The top side shows the topography of the island - where this fort is situated. This fort was built some hundred years before the Mohen- Jo - Daro. This water fort is secured properly with deep sea channel and high rise boundary walls. This is surprising that the entire Harappan cities are forts. This is clearly Krishna built and developed culture.
The age of Hastinapur - see its Mentor at Dwarika. The Dwarika then has finest civic administration. A view of Dwarika township now submerged under the water is shown here.
The age of Krishna at Dwarika has seen finest ceramic made design patterns. The use and production of the ceramic at Dwarika says that the age of Krishna was known to fast wheel technique.
The work of Dr N Jha and Dr NS Rajaram - The Deciphered Indus Script- is devoted to the study of the Indus script and its decipherment. It offers a methodology for reading the Indus script by combining paleography with ancient literary accounts and Vedic grammar. These illustrate the methodology and also help shed new light on the Harappans and their connections with the Vedic Civilization. The language of the seals is Vedic Sanskrit, with a significant number of them containing words and phrases traceable to the ancient Vedic glossary Nighantu, compiled from still earlier sources by Yaska.
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Dwarika description from the author's book - "Discovery of Lost Dwarika" Available in the Paper book at Amazon America. The Hindi book is available at the Amazon India - click the link following:
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