सनातन दर्शन में प्रद्युम्न. Pradyumna In The Sanatana Philosophy
लेख पढ़ने के पहले अंग्रेजों के द्वारा स्थापित काल क्रम को हटा दें तथा पुराण के काल क्रम पर ध्यान दें :
१. चन्द्रगुप्त मौर्य - १५१६ ईस्वी पूर्व ( न की ३२३ ईस्वी पूर्व )
२. गौतम बुद्ध - १८६४ ईस्वी पूर्व ( न की ५०० ईस्वी पूर्व )
Before reading this article please rectify defective dates as follows :
1. Chandragupta Maurya - 1516 BCE ( not 323 BCE )
2. Goutam Buddha - 1864 BCE ( not 500 BCE ) .
हमारे भारतीय दर्शन में प्रद्युम्न का एक अनोखा, विशाल चरित्र प्राप्त होती है. शौर्य और वीरता का दूसरा नाम प्रद्युम्न है. प्रद्युम्न, भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के बड़े पुत्र थे. भारतीय दर्शन में, प्रद्युम्न का ध्वज चिन्ह "मकर" है. हमारे भारतीय दर्शन में ही एक प्राचीन कहानी मिलती है जिसमें किसी "मछली" का विवरण प्राप्त होती है जिसनें प्रद्युम्न का अपहरण कर लिया था. यह मछली चिन्ह असुर राजा का ध्वज चिन्ह है जो बेबीलोन के राजा थे . भारतीय दर्शन में यह असुर प्राचीन राजा शम्बर बताई गई है . जो भी हो . प्रद्युम्न काअसुर राजा को बेबीलोन में पराजित करना तथा वापस द्वारिका लौटने का विवरण है . प्रद्युम्न अब एक नायक थे. बलराम और भगवान कृष्ण का अपार स्नेह इन्हें प्राप्त थी. द्वारिका शासन में प्रद्युम्न की बहुत सक्रिय भागीदारी थी. महाभारत युद्ध के बादल अब धीरे धीरे मंडरा रहे थे. भगवान कृष्ण ने पाण्डव के पक्ष में युद्धघोष किया . बलराम कुछ अप्रसन्न थे . उन्होंने प्रद्युम्न को युद्ध से अलग रहने की सलाह दी. प्रद्युम्न इस युद्ध में अनुपस्थित हैं.
बेबीलोन से लौटने के पश्चात प्रद्युम्न का ध्वज चिन्ह मकर स्थिर हो गई . जिसमें मकर ने मछली को अपने जबड़े में पकड़ रखी है. यह भारत का बेबीलोन साम्राज्य पर आधिपत्य का सबल प्रमाण है . भारत में बहुत सारे पंच -कॉइन प्राप्त हैं जिनमें प्रद्युम्न का ध्वज चिन्ह मकर के साथ मछली चिन्ह प्राप्त होती है . यही चिन्ह "मोहन -जो - दडो" के मुद्रा चिन्ह में मकर के साथ मछली का चिन्ह प्राप्त होती है, जो प्रद्युम्न का ही घटना बताती है . द्वारिका के एक प्रमुख पोत का आकार "मकर - मछली" चिन्ह है यह अनोखा और अद्भुत है . यह चिन्ह, जो "मोहन -जो - दडो" तथा द्वारिका दोनों जगह प्राप्त हैं , यह बताती है की "मोहन -जो - दडो" के नदी मार्ग से भेजे जाने वाले सामान द्वारिका के प्रमुख पोत जिसका चिन्ह "मकर - मछली" थी , वहां पहुँचती थी . वहां से वे सामान पुनः समुद्री जहाज में चढ़ते थे तथा उन्हें मेसोपोटामिया - ग्रीक जैसे दूरस्थ देशों को भेजा जाता था .
पंच -कॉइन में प्रद्युम्न का ध्वज चिन्ह का मिलना अनौखी घटना है जिस पर पुरातात्विक जगत ने अपनी दिमाग नहीं चलाई है . आलश्य भाव में बिना दिमाग चलाये बे सिर पैर का इसे मौर्य काल का मान लिया है . ये सारे पंच -कॉइन हड़प्पा के अवसान काल के हैं जब १९०० ईस्वी पूर्व में सरस्वती नदी सूख गई. सनातन वैदिक दर्शन का सूरज अब धीरे धीरे अस्त हो रहा था. बुद्ध देव का आविर्भाव १८६४ ईस्वी पूर्व में भारत में हुई . भारत में १६०० ईस्वी पूर्व से लेकर १५०० ईस्वी पूर्व में बौद्ध का चरम साम्राज्य था. बौद्ध को सरकारी सहायता प्राप्त थी. बहुत सारे हिन्दू मंदिर और स्थलों पर बौद्धों ने आधिपत्य कर लिया. अयोध्या के कुछ प्राचीन स्थल पर भी बौद्ध ने कब्जा कर ली थी. यह वह कुछ वैसा ही घृणित कर्म थी जो इस्लाम ने भारत में किया. कुछ समय बाद पुष्य मित्र शुंग ने उन हिन्दू स्थलों को पुनः अपने कब्जे में ले ली. पुष्य मित्र शुंग ने यद्यपि यहां राज शक्ति का प्रयोग की थी . अनेक बौद्ध विहार नष्ट कर दिए गए तथ जिन हिन्दू मंदिरों को बौद्धों ने जबरन ले लिए थे - उन्हें वापस ले ली गई .
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इतिहास को नये और वास्तविक रूप में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। सबसे बड़ी बात यह प्रमाण सहित है।
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