द्रुह्य : एक विस्मृत छवि . Druid: A Forgotten Memory
मोहनजोदड़ो का योग ध्यानस्थ मुद्रा द्रुह्य के साथ आयरलैंड पहुंची . आयरलैंड में योग ध्यानस्थ मुद्रा कुछ इस रूप में मिलती है . The Yogic deity of the Mohen-Jo-Daro is seen in the Druids at the Ireland
लेख पढ़ने के पहले काल क्रम को शुद्ध कर लें - चन्द्रगुप्त मौर्य १५१६ ईस्वी पूर्व न की ३२३ ईस्वी पूर्व . गौतम बुद्ध १८६४ ईस्वी पूर्व न की ५०० ईस्वी पूर्व . महाभारत युद्ध ३१३८ ईस्वी पूर्व . Before reading correct the age line of India - Chandra Gupta Maurya 1516 BCE - Not 323 BCE . Gautam Buddha 1864 BCE ( Not 500 BCE ) . The Mahabharata War 3138 BCE.
भारत के चंद्र वंश में अनेक प्रतापी राजा हुए. वैदिक राजा ययाति के पांच पुत्र : यदु, तुर्वशु , अनु , पुरु तथा द्रुह्य हुए. यदु वंश में भगवान कृष्ण आये और पुरु वंश में राजा भरत तथा कुरु हुए. पुरुवंश चंद्र वंशी राजा थे जो समुद्र गुप्त तक चली है. इन सभी वंश में भगवान कृष्ण श्रेष्ठ थे. जब ये द्वारका के राजा थे, यदु, तुर्वशु , अनु , पुरु तथा द्रुह्य के वंशज इनके शासन के अंतर्गत राज काज देखते थे. जब द्वारका डूब गई तब द्रुह्य यहाँ से चले गए. पाणिनी ( 3100 ईस्वी पूर्व ) ने द्वारका से दूर द्रुह्य और इनके वंशजों का निवास गांधार के आस पास देखा था. समय के लोप से , द्रुह्य आयरलैंड पहुंचे. द्रुह्य के स्मृति में भगवान कृष्ण तथा द्वारका डूबने की घटना ताजी थी वे इस घटना को भूले नहीं थे. द्रुह्य के कई किस्से कहानियों में समुद्र में डूब गई विशाल नगर का वर्णन मिलता है जिस कारण ये विस्थापित हुए. प्लेटो ने द्रुह्य का उल्लेख किया है. प्लेटो द्रुह्य का सम्बन्ध "अटलांटिस" से बताते हैं . किसी अरब के व्यापारी से पहली बार प्लेटो ने द्रुह्य का पुराना निवास "अटलांटिस" के बारे में सुन रखा था. प्लेटो ने इस डूबे शहर "अटलांटिस" का उल्लेख "टाइमस" में की है. कई और प्राचीन ग्रीक लेखकों और इतिहासकारों ने भी इस प्राचीन द्रुह्य राजवंश की जानकारी दी है. जूलियस सीजर ने अपनी प्रख्यात पुस्तक "गल्लीक वार" में इन द्रुह्य को अटलांटिस नष्ट होने के बाद वहां का विस्थापित बताया है. यह प्लेटो और जूलियस सीजर की डूबी"अटलांटिस" - भारत की डूबी द्वारका है.
आज का ब्रिटेन अभिजात्य द्रुह्य का ही वंशज अपने आप को मानता है. सांस्कृतिक और ज्ञान में रोम की तुलना में द्रुह्य वंशज बहुत ही श्रेष्ठ था. द्वारका डूबने के पश्चात सारस्वत ब्राह्मण का एक वर्ग महाराष्ट्र , गोवा तथा सुदूर दक्षिण भारत पहुंच गया. वहीं सारस्वत ब्राह्मण की दूसरी धारा द्रुह्य वंशज के साथ आयरलैंड पहुंची थी. ये ब्राह्मण , बौधायन शुल्व-सूत्र और सुश्रुत की शल्य विद्या अपने साथ लेते गए थे. इन्हीं ब्राह्मणों से बौधायन शुल्व-सूत्र पाइथोगोरस के पास पहुंची. पाइथोगोरस के बहुत सारे ज्यामिति सूत्र, बौधायन शुल्व-सूत्र से लिए गए हैं .
ब्रिटेन की महारानी आभिजात्य द्रुह्य के वंशज मानी जाती हैं. स्वयं ब्रिटेन के लिये द्रुह्य एक पहेली है. फिर भी ब्रिटेन की स्मृति में द्रुह्य के वंशज अपने आप को प्राचीन चंद्रवंश के शासक से जोड़ते हैं. द्रुह्य के ब्राह्मण धर्म, विज्ञान, गणित, न्याय के विद्वान माने जाते थे. इनका आचार व व्यवहार भारत के ब्राह्मणों की तरह ही था. बहुत समय तक द्रुह्य में मृतक का अग्नि संस्कार होती थी. रोम के आक्रमण के पश्चात इनके आचार व व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ गई. बहुत समय तक द्रुह्य अश्वमेध यज्ञ का विधान जो भारत से ले गए थे वे आयरलैंड में करते थे. कलांतर में वे इस विधान को भूल गए. डब्लू.अस. ब्लॉकर ने " रिसर्चेस इनटू दे लॉस्ट हिस्टोरीज आफ अमेरिका " में यह सच ही लिखा है की द्रुह्य की अभिजात्य विचार दर्शन में भारत का ही गणित और शल्य विज्ञान का दर्शन मिलती है. द्रुह्य शिवलिंग की उपासना करते थे. इनकी प्राचीन फोनेशियन लिपि प्राचीन ब्राह्मी से समतुल्यता रखती है. इतना ही नहीं पूरे आयरलैंड की भाषा में संस्कृत शब्द की बहुतायत है. फ़बेर ने काबीरी में लिखा है - भारत के ब्राह्मण के ही तरह द्रुह्य के ब्राह्मण अजनबी लोगों के साथ अपने ज्ञान विज्ञान को बांटते नहीं थे . अश्वमेध यज्ञ के समय ये ब्राह्मण द्रुह्य के वंशावली का गुणगान करते थे . ये भारत की ही परम्परा थी जिसमें अश्वमेध यज्ञ के समय राजा के वंश का गुणगान ब्राह्मण करते हैं. यह अश्वमेध यज्ञ की परम्परा राम के पिता दशरथ, स्वयं भगवान राम तथा युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में मिलती है. भारत की तरह ही अश्वमेध यज्ञ का पवित्र घोड़ा का सम्पूर्ण अंश अग्नी देवता को समर्पित कर दी जाती थी. द्रुह्य वंशज और उनके ब्राह्मण रोम के प्रभाव में अपना वैदिक आचार - विचार भूलने लगे. कालांतर में अश्वमेध यज्ञ की भी परम्परा वे भूल गए. इन्हें अग्नि में देने के बजाय अश्व अब दफ़न की जाने लगी जो "अश्वमेधयज्ञ" का अवशिष्ट अवचार थी.
ब्रिटेन और ग्रीक साहित्य का मर्मज्ञ विद्वान पोकॉक "इंडिया इन ग्रीस" में लिखता है द्रुह्य के गौरव शाली वंशज अपने आप को चंद्रवंश का मानते हैं इसलिए वे अपने राज मुकुट में अर्ध चंद्राकार चन्द्रमा को चिन्हित रखते हैं . "संस्कृत लेक्सिकन" में विल्सन लिखता है की ब्रिटेन के द्रुह्य के गौरव शाली वंशज रोम के अत्याचार से पीड़ित थे. वहीं रोम की यह शिकायत थी की द्रुह्य के गौरव शाली वंशज, रोम के अवचार और संस्कृति से घृणा करते हैं. जूलियस सीजर ने द्रुह्य के गौरव शाली वंशज का विशेष वर्णन किया है. जीन ब्राण्टियस "कमेंट्री ऑफ़ जूलियस सीजर" में लिखता है द्रुह्य भारत के श्रीमदभगवद्गीता के अनुकरणीय रूप प्रस्तुत करते हैं. वे आत्मा को सदा अमर बताते हैं जो कभी नष्ट नहीं होती.
ब्रिटेन के महान विद्वान रोवेन लियुकान ने लिखा है द्रुह्य मात्र एक विस्मृत छवि हैं. इनकी महान गाथा आधुनिक सभ्यता के चादर में दफ़न हो गई है . ये द्रुह्य के वंशज आज भी महान हैं जो इनके रक्त गत संस्कार से जाती नहीं .
upaklrisan yathakalam vidhivad bhoorivarchasah"
. (MB- Ashva Medhika Parva: 32 )
"tam vashadhoomgandham tu dharmrajah sahanujaih
upajishad yathasastram sarvapapaham tada"
(MB- Ashva Medhika Parva: 4)
"shishtanyaagani yananyasam stasya-asvasya naradhipa
tanyagnou juduvurdhiraam samastah shodash artvijah"
(MB- Ashva Medhika Parva: 5)
The ancient Vedic ritual "Ashwa Medha Yagya" ( Shakta practice ) has been conducted at the "Kuru Jaangal" province ( Kalibangan ). The "Ashwa Medha Yagya" is essentially carried by King. Others are not eligible. This is clear evidence of Horse Sacrifice with horse bones. In the ancient Vedic practice , the entire horse is sacrificed to the Fire God. This is not consumed. This was carried by Yudhisthira after the MB war. In the Mahabharata, Yudhishthira has performed the difficult but long one year rite of the "Ashvamedha Yagya" immediately after the MB war to declare himself the Chakravarti Samrat of India. This Yagya is a costly affair, where a new township is built of more than 10000 people to conduct the Yagya. The Jaiminiya Ashwamedh ( जैमिनीयाश्वमेध: ) gives a vivid description of the conduct of this important rite in the last Vedic Age by Yudhishthira. Now this practice is totally discontinued after the end of the Kingship Rule in India. The last rite in India has been performed by the King of Jaipur. The horse head and the horse bones are clearly visible at the Kalibangan site.
The Druids were conducting fire cremation of the dead ( Top ). After the Roman's invasion strict laws were imposed on the British and the Druids to abandon the Druid Practice. The fire cremation practice shifted to the burials in the Druids- Ancient Painting.
The Druids migrated from the Dwarika. The Dwarika is a submerged city mentioned widely in the MB literature associated with Bhagwan Krishna. The above visual shows ceramic plates widely used in the Fort of Bhagwan Krishna. This site is submerged now some 400 feet under the deep sea water at the Gulf of Kutch. This links the Druids known to the Dwarika and the Mohen-Jo-Daro.
The Druids carried with them the ancient Vedic number signs. The number signs are shown in the top panel which appears on the Mohen-Jo-Daro seals. Downside there is sutra from Boudhayan on the geometrical design. The number signs migrated to Europe along with the Boudhayan Sulva Sutra with the Druids. The Vedic number signs and the Boudhayan Sulva Sutra appeared as the Roman numbers and the Pythagoras Theorem . This struck down not only the bogus Aryan Invasion Theory in India at 1500 BCE. But it also struck down the bogus offspring the Indo European Theory.
The Mohenjodaro Symbolism of the Unicorn is the unique and rare symbolism of Bhagwan Krishna. This is a symbolism of semi horse and bull. From head to neck this is horse and remaining body is bull with one stiff horn. When the Dwarika submerged at 3102 BCE , people of the Dwarika migrated to Ireland. This migration carried the Vedic Sanskrit language and the Unicorn Symbolism. Now Ireland and the Scotland at both the places the Unicorn symbolism , which was semi horse at the Mohen-Jo-Daro, converted as full horse with one stiff horn . This is very auspicious, sacred symbolism at the Ireland and the Scotland.
The top left is showing ancient Ireland submerged port and the right side is showing the ancient Dwarika port of Bhagwan Krishna. The Ireland Port, is filled with the similar ceramic glaze polished port floor as seen at the Dwarika. This is not seen any where in the world, including the Sumerian and the Babylonian.
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Dwarika description from the author's book - "Discovery of Lost Dwarika" Available in the Paper book at Amazon America. The Hindi book is available at the Amazon India - click the link following:
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