Dwarika And The Indo European. द्वारिका और इंडो यूरोपियन
"इमं में गंगे यमुने सरस्वति शुतुद्रि स्तोमै सचता परूष्ण्या।
असिवक्न्या मरूद्वृधे वितस्तयार्जीकीये श्रणुह्या सुषोमया।"
( Rigveda - Nadi Sukta ).
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The wide best designed ancient ports of Krishna's Dwarika is not seen in any parts of the world including Egypt, Rome and Greece at the last Vedic age ( 3200 BCE ). The deep Rig-Vedic age or the Holocene ( 10000 BCE ) presents a very conservative society where Indians are particular in protecting their blood and language. Sanskrit holds important position among the languages just as mathematics in the sciences. The perfection of its grammar - the Ashtadhyayi, which appeared in the last Vedic age is the cultivation of language developed during the last 7000 years in India. There is no any trace of European or sematic root here in the Rigvedic language. "Sanskrit is a carefully developed language to meet the specific needs of India. This was carefully preserved through the efforts of hundreds of generations of Vedic seers.The wide sea trade contact of the Indians at the last Vedic age ( 3200 BCE ) with the Egypt, Mesopotamians and the Greek, allowed many Sanskrit words to intermix with the local dialect out of India. After the collapse of the 1875 sepoy mutiny in India. The British Intelligence department, learned from the Germans to rule any land on the basis of the "Race Purity Theory". The British adopted this design and imposed on the Indians the bogus Aryan Invasion Theory - which offspring product is the Indo European Theory.
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द्वारिका के बेहतरीन निर्मित पोत रोम, यूनान, मिस्त्र जैसे सभ्य से सभ्य देश में नहीं मिलते ये ३२०० ईस्वी पूर्व के वे पोत थे जिसने बाहरी दुनिया ने भारत से संपर्क किया. द्वारिका से कोई ७००० वर्ष पीछे विशाल ऋग्वेद की संस्कृत भाषा हमें खड़ी मिलती है. ऋग्वेद और धर्मसूत्र के अध्ययन से यह पता चलती है की भारतीय अपने रक्त और भाषा शुद्धता की पहचान बनाये रखने के लिए कठिन आचरण व्यवस्था बनाये रखते हैं . अंतिम वैदिक काल के अष्टाध्यायी के नियम उस भाषा को बोलने वाले की अनवरत ज्ञान उद्योग की पराकाष्ठा है, जिसमें यूरोप भाषा समूह के कोई भी शब्द संस्कृत में नहीं मिलते. अंतिम वैदिक काल में बाहरी दुनिया व्यापार के माध्यम से भारत के संपर्क में आये. यह व्यापार था जिसने ग्रीक और लेटिन के भाषा समूह को समृद्ध बनाया. १८५७ के सिपाही विद्रोह में अंग्रेजों के पाँव भारत से उखड चुके थे. ये सिपाही अंग्रेजों से मुक्त भारत देखना चाहते थे. भारत पर अपनी शासन मजबूत करने के लिए ब्रिटिश इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट ने जर्मन से "रक्तगत शुद्धता" का नियम सीखा. इस नियम के आधार पर ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने भारत में आर्य आक्रमण की अवधारणा रखी. यह तर्क दी गई जैसे आर्य विदेशी हैं वैसे भी ब्रिटिश विदेशी हैं - दोनों को भारत में रहने का अधिकार है . ब्रिटिश आर्य आक्रमण की अवधारणा गलत ही नहीं थी - यह जातिगत रूप से करोणों भारतीय को अपमानित करने का साधन थी. इंडो भारोपीय भाषा सिद्धांत इसी ब्रिटिश आर्य आक्रमण अवधारणा की संतान है.
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