सेटेलाइट वैज्ञानिक सर्वेक्षण तथा स्थल सर्वेक्षण में वाराणसी का प्राचीन मंदिर
लगभग १८०० किलोग्राम का लैंडसेट उपग्रह पृथ्वी से कोई ९०० किलो मीटर ऊपर से , वाराणसी के बाबा विश्वनाथ को अपने शक्तिशाली नेत्र से देख रहा है। इसकी वैज्ञानिक विश्लेषण करने की क्षमता अद्भुत है। दो विभिन्न अवस्थाओं में इस परिसर को देखी गई है। सामान्य अवस्था (पहला चित्र) , असामान्य अवस्था - रेड कलर बैंड लाइट में स्थल जांच (दूसरा चित्र) तथा असामान्य अवस्था - रेड कलर बैंड लाइट - गोलाकार रूप में वर्णित ढांचा स्थल (तीसरा चित्र) । पहला चित्र और तीसरे चित्र का तुलनात्मक अध्ययन करने पर तीसरे चित्र के पीले रेखा में वर्णित स्थल को ध्यान से देखें। इस स्थल पर उजले रंग के गहरे निशान बन रहे हैं जो जमीन में दबे ढांचे से निकल रही ऊर्जा को रेड कलर बैंड ने पकड़ी है।
असामान्य अवस्था में इस परिसर को रेड कलर बैंड में जांची गई है। रेड कलर बैंड की यह विशेषता है की जमीन के अंदर से स्ट्रक्चर जैसे ठोस पदार्थ एक अलग ऊर्जा छोड़ती है जो रेड कलर बैंड में तुरंत देख लेती है। रेड कलर बैंड में जिस जगह को चिन्हित की है उसे पीले तीर निशान से बताई गई है। इस जगह , ग्राउंड पेनेट्रेशन राडार का प्रयोग करने पर यहां विशाल ढांचा मिलेंगे। जमीन के नीचे यह विशाल ढांचा, वर्तमान स्थल जहाँ हिन्दू पक्ष शिवलिंग मिलने की बात कर रहा है, उस वजू स्थल से आगे धरातल में कोई चंद्राकार रूप में एक विशाल स्ट्रक्चर के रूप में जमीन के नीचे है। यह स्ट्रक्चर वर्तमान खोजे गए शिवलिंग को चारों ओर से घेर लेती है तथा एक विशाल मंडप का रूप धारण करती है।
समुद्र में डूबी भगवान कृष्ण के द्वारका के खोज में इस तकनीक का बहुत प्रयोग की गई है। इस सेटेलाइट तकनीक के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को आगे का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने में विशेष मदद मिलेगी।इसी परिसर में पत्थर पर स्वस्तिक , त्रिशूल तथा प्राचीन संस्कृत लेख मिल रहे हैं जो अस्पष्ट हैं, परन्तु यहां कभी हिन्दू मंदिर था ये स्वस्तिक, त्रिशूल और प्राचीन संस्कृत लेख प्रमाणित करते हैं।
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