"लक्ष्मण - जोदड़ो" एक रिपोर्ताज
सिंध के "मोहन-जोदड़ो" के पास स्थित स्थल "लक्ष्मण - जोदड़ो" आज समाप्ति के मुहाने पर खड़ी है. इसकी आवाज दब चुकी है. यह स्थल विलुप्त हो चुकी है. "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" विशुद्ध हिन्दू नाम हैं . ये हिन्दू नाम बतलाते हैं की इस स्थल के निर्माण के पहले भारतवर्ष में भगवान कृष्ण और भगवान राम का अवतरण हो चुकी है. "लक्ष्मण - जोदड़ो", बहुत विशाल क्षेत्र में फैली थी . यह किसी भी अवस्था में "मोहन - जोदड़ो" से कम नहीं थी. "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" साथ साथ विकसित हुए . ये दोनों सभ्यता एक वृक्ष के दो पत्ते थे . "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" को अंग्रेजों ने आसपास खोजा था . भारत के लोग "मोहन-जोदड़ो" तो जानते हैं पर वे "लक्ष्मण - जोदड़ो" नहीं जानते ! तेजी से बढ़ रही औद्योगिक करण ने "लक्ष्मण - जोदड़ो" को निगल लिया है . बहुत सारे उद्योग समूह के बीच "लक्ष्मण - जोदड़ो" है . कोई भी पुरानी चीज जान बूझ कर नष्ट कर दी जाती है . उद्योग के निर्माण में लगातार घूम रहे बुलडोजर ने "लक्ष्मण - जोदड़ो" को लगभग समाप्त कर दिया है.
ये दोनों नगर द्वारका डूबने के बाद बसे. सिंधु नदी के किनारे "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" बसे हैं . ये सारस्वत प्रदेश के ह्रदय स्थल में बसे थे. महाभारत की पैनी और सूक्ष्म दृष्टि "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" पर है . द्वारका डूबने के बाद , यहाँ के निवासियों को "सारस्वत प्रदेश" में बसाई गई थी. महाभारत में इसका प्रामाणिक विवरण दर्ज है. भगवान कृष्ण के पोते युयुधान ही उनके शासक थे. इसलिए "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" के बहुत सारे प्रमाण, मुद्रा तथा चिन्ह भगवान कृष्ण के चारों ओर ठीक उसी प्रकार चक्कर काटती हैं जैसे सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी करती है . "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" तो भगवान कृष्ण को मिथक नहीं मानती परन्तु हाड मांस के बने पुतले जिनकी ज्ञान दृष्टी धुंधली है वे अनर्गल प्रलाप करते हैं. बिना भगवान कृष्ण के "मोहन-जोदड़ो" और "लक्ष्मण - जोदड़ो" का जन्म नहीं हो सकती.
आज पाकिस्तान "लक्ष्मण - जोदड़ो" का नाम नहीं लेती ! इसे लज्जा बोध होती है ! होनी भी चाहिए. मात्र पाकिस्तान के भरोसे "लक्ष्मण - जोदड़ो" को सुरक्षित रखना कठिन था. सिंधु नदी के मार्ग में कई प्राचीन पोत मिलते हैं. ये पोत पास स्थित टीले में भारत की ही कहानी कहते हैं. इसी टीले में एक "लक्ष्मण- जोदड़ो" भी थी जो विलुप्त हो चुकी है.
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