"स्पेस आर्कियोलॉजी" में भारत की ऊंची छलांग

 


"स्पेस आर्कियोलॉजी" में "एनालॉग तकनीक"  भारत की ऊंची उड़ान है. यह  न केवल सेटेलाइट को समुद्र के अंदर देखने  की क्षमता प्रदान करती है, अपितु विज्ञान के असीमित संभावना को लेकर यह तकनीक उपस्थित हुई है . चित्र में गहरे पानी में स्थित प्राचीन द्वारका में संगमरमर से निर्मित भगवान कृष्ण की राजमहल देखी जा रही है.       ( Protected under Copyright & Intellectual Property Law  : Birendra K Jha )  


द्वारका की खोज, भारत के प्राचीन इतिहास और संस्कृति के अनेक अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर देती है. द्वारका, पूर्व वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल की संगम बिंदु है. द्वारका निर्माण के लगभग 30 वर्षो के बाद महाभारत युद्ध हुई थी. महाभारत युद्ध के उपरान्त, मोहनजोदड़ो जैसे नगर उदित हुए. मोहनजोदड़ो की मुद्रायें विशाल परिमाण में, महाभारत युद्ध के नायक भगवान कृष्ण का स्मरण करते हैं.  द्वारका से प्राप्त जैविक अंश   के वैज्ञानिक कार्बोन डेटिंग,   द्वारका डूबने   का सटीक समय 3100 ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE ) बताते हैं. हिन्दू कलेण्डर, सटीक वर्षों में  यह समय 3102  ईस्वी पूर्व ( 3102 BCE ) रखती  है. इस प्रकार कार्बोन डेटिंग,  हिन्दू कलेण्डर के समय को सही मानती है.  द्वारका की खोज हो जाने के बाद भारत के प्रतिष्ठित दो विद्वान, डॉ नटवर झा और डॉ एन.अस . राजाराम की वर्ष 2000 में प्रकाशित पुस्तक " डेसीफर्ड  इंडस स्क्रिप्ट" की बात अक्षरसः सही है की सिंधु मुद्राओं में भगवान कृष्ण, द्वारका और महाभारत की चर्चा है. 

यह दुखद और सत्य है की जिस जिजीविषा से द्वारका खोजने का कार्य भारत सरकार  को करनी चाहिए थी वह नहीं  की गई. कोई खोज प्रयास किये भी गए तो गलत दिशा में इसे  खोजी गई.   खम्बात की खाड़ी से लेकर वर्तमान द्वारकाधीश मंदिर के समुद्र में ही द्वारका खोजने का असफल प्रयास की गई थी. कच्छ के खाड़ी के कठिन और गहरे समुद्र में द्वारका खोजने का कभी प्रयास नहीं की गई. 1963 में दक्कन कॉलेज पुणे ने पहला असफल प्रयास किया था . ए.अस.आई ने 79-80  में दूसरा असफल प्रयास किया. फिर पुनः 2006-2007 में तीसरी असफल प्रयास  ए.अस .आई ने किया. 2001-02 में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओसेनोग्राफी ने भी एक असफल प्रयास किया. इन सबसे विपरीत, अस्सी के दशक में कच्छ के खाड़ी में डॉ.अस.आर. राव  ने साहस के साथ बेट-द्वारका में द्वारका की खोज करने का उत्तम कार्य किया था. यद्यपि बेट-द्वारका, भगवान कृष्ण की मूल द्वारका नहीं थी. यह मूल द्वारका नगर की सुरक्षा चौकी थी. डॉ सुब्रमणियम स्वामी के भारत सरकार के प्रधान मंत्री को लिखे पत्र से पता चलती है की,  डॉ.अस.आर. राव साहब को इसके बाद द्वारका खोज करने की कोई स्वीकृति भारत सरकार से नहीं मिली. स्वीकृति क्यों नहीं मिली इसके कारण अस्पष्ट हैं.   

अभी तक के द्वारका के खोजों में भारत  खतरनाक अवस्था में मानवीय गोताखोरों का ही प्रयोग कर  रहा था.  अंतरिक्ष में घूमती सेटेलाइट का उपयोग द्वारका खोज में  इसके पहले कभी नहीं की गई  थी. पहली बार मैंने   सेटेलाइट में "एनालॉग तकनीक" का उपयोग करके कच्छ के खाड़ी के गहरे समुद्र  में सेटेलाइट को देखने योग्य बनाया.  इस जांच क्रम में भगवान कृष्ण के प्राचीन द्वारका के अनेक विश्मयकारी अवशेष प्रमाण प्राप्त हुए जिसने द्वारका खोज की दिशा बदल दी. भगवान कृष्ण का विशाल संगमरमर से निर्मित राजमहल, प्राचीन द्वारका के पोत, सिरेमिक स्टोन की बनी चित्रकारी और अन्यान्य अवशेष द्वारका खोज की महत्वपूर्ण उपलब्धि है. भगवान कृष्ण की यह द्वारका कच्छ के खाड़ी में प्रमुख सात द्वीपों में फ़ैली है. ये सातों द्वीप की समुद्री किले की दीवार, एक निश्चित चिन्ह या पशु आकार   में बनाई गई  है. कुछ प्रमुख   चिन्ह  हैं :   कुम्भ, शंख, गोमुख, एकशृंग, अश्व , उष्ट्र तथा  कच्छप . यह द्वारका,  जनसंख्या दवाब में निवास के लिए छोटी पड़ गई.  तब भगवान कृष्ण ने इसका विस्तार कच्छ के रण में की थी. उन दिनों कच्छ का रण, द्वारका से समुद्र मार्ग से जुडी थी और लबालब समुद्र से भरी थी.  यह आज की तरह सूखी नहीं थी.   

द्वारका की मेरी यह खोज "स्पेस आर्कियोलॉजी"  की महत्वपूर्ण उपलब्धि  है. विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जिसने "स्पेस  आर्कियोलॉजी"  में गहरे समुद्र में सेटेलाइट का प्रयोग करके सफलता प्राप्त की है.  एनालॉग तकनीक में सेटेलाइट के उपयोग  की असीमित   सम्भावनायें    हैं  जैसे गहरे समुद्र में तेल के कूयें खोजना, रक्षा क्षेत्र में समुद्र के गहरे पानी में छिपे शत्रु के पनडुब्बी या ठिकानों का पता लगाना  इत्यादि . 

द्वारका की यह खोज, पर्यटन की असीमित संभावना को जन्म देती है. गहरे समुद्र के पर्यटन में भगवान कृष्ण की द्वारका दर्शन भारत का अभिनव प्रयोग हो सकती है. यह असीमित रोजगार और भारत के जी.डी.पी को बढ़ाने वाली अभिक्रिया है.  भारत सरकार के सम्बंधित मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय को न केवल द्वारका के सम्बंधित स्थल तक पहुंचने की सुविधा देनी होगी अपितु प्राचीन द्वारका को सुरक्षित करने के युद्धस्तर के प्रयास करने होंगे. प्राचीन द्वारका अवशेषों को नष्ट करके अनेक आधुनिक बंदरगाह बना दिए गए हैं. ये बंदरगाह पेटोलियम कचड़ा छोड़ते हैं. पेट्रोलियम कचड़े  के कारण समुद्री वनस्पति तेजी से मर रहे हैं, जिनसे प्राचीन द्वीपों  की मिटटी का क्षरण हो रहा  है. किसी भी समय,   समुद्र  तेजी से  इन द्वीपों को बहा ले जाएगी.   


     ☝जनसंख्या दवाब के चलते, भगवान कृष्ण ने प्राचीन द्वारका का विस्तार कच्छ के खाड़ी के बाद कच्छ के रण में की थी. कच्छ के रण में इस द्वारका नगर के बाहर किले का निर्माण की गई थी जिसके दीवार के अवशेष सेटेलाइट चित्र में देखे जा रहे हैं.   
( Protected under Copyright & Intellectual Property Law  : Birendra K Jha )   

वीरेंद्र के झा की " डिस्कवरी ऑफ़ लॉस्ट द्वारका"- द्वारका खोज पर तीन खंडों में हिंदी प्रेजेंटेशन यूट्यूब में देखें:

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About the author: Mr. Birendra K Jha, is an established administrator. He is  author, writer, speaker on the Hinduism and the Hindu studies. He has authored several books. He worked for 18 years under the sea for discovering the submerged Dwarka of Bhagwan Krishna. He developed the analogue technology in the satellite science for discovering  the submerged archaeological structures under the sea. He is an established consultant now, providing expert consultation on the offshore and the onshore GPS based hydrocarbon location points. He is also providing in India and abroad satellite based consultation on the archaeological sites. 


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