विघाकोट की डायरी



कच्छ की रण भगवान कृष्ण की वह अद्भुत संसार है जिसके बारे में हमारे इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता,  भूगर्भवेत्ता  बहुत ही कम  जानते हैं.  इतिहासकारों तथा  पुरातत्ववेत्ताओंने ने कभी जानने का प्रयास नहीं किया की इस जगह की महत्ता भारतीय संस्कृति और इतिहास में क्या है !   कच्छ का रण समुद्री मार्ग  द्वारा,  कच्छ के खाड़ी  में डूबे भगवान कृष्ण के द्वारका से जुडी थी.    कच्छ के खाड़ी के अंतिम सिरे में सरस्वती नदी और  समुद्र,   एक विशाल डेल्टा बनाती थी. इस डेल्टा की एक शिरा  कच्छ की खाड़ी तथा दूसरी शिरा कच्छ के रण से जुडी थी. कच्छ की रण पहले समुद्र थी. कुछ ऐसी जलवायू परिवर्तन हुई की सरस्वती नदी डेल्टा और कच्छ की रण के समुद्र  दोनों सूख गए. इस डेल्टा से  कच्छ की रण को जाने वाली सूखी पट्टी में अनेक समुद्री मछलियों और समुद्री जीव जन्तुओ के प्राचीन अवशेष प्राप्त होते हैं. विज्ञान इन अवशेषों के आधार पर यह प्रमाणित करती है की कभी ये सूखी पट्टी समुद्र थे. सेटेलाइट में  इस प्राचीन समुद्र के सूखे अवशेष को देखी गई है.  हम आपको लिए चलते हैं भगवान कृष्ण के उस युग में जब सरस्वती नदी डेल्टा और कच्छ के रण सूखे नहीं थे. इस युग की कहानी शुरू होती है  3200  ईस्वी पूर्व ( 3200 BCE ) में, जब भारतवर्ष में भगवान कृष्ण ने द्वारका नगर बसाई थी.  

भगवान कृष्ण के इस द्वारका नगर में नागरिक के साथ साथ विशाल सेना भी रहती थी. हरिवंश पुराण द्वारका नगर में जनसंख्या दवाब की चर्चा करती है. यह द्वारका नगर भी निवास के लिए छोटी पड़ गई.  इस परिस्थिति में भगवान कृष्ण ने कच्छ के रण में नई समुद्री किला बनवाई . ये समुद्री किला वैसे ही हैं जैसे प्राचीन द्वारका में बने हैं.  द्वारका नगर में प्रवेश करने के नियम क़ानून भगवान कृष्ण ने कठोरता पूर्वक रखा था. बेट-द्वारका और कच्छ के रण स्थित विघाकोट द्वारका नगर की  सुरक्षा चौकी थी.  इस  सुरक्षा चौकी में तैनात सैनिक, बिना परिचय पत्र के द्वारका नगर में जहाजों तथा नागरिकों को प्रवेश नहीं देते थे.   बेट-द्वारका में ये परिचय पत्र  डॉ. अस.आर. राव साहब को संयोग से प्राप्त हुई है.  

हम आपको लिए चलेंगे विघाकोट, जो द्वारका नगर की दूसरी सुरक्षा चौकी थी.  इस प्राचीन सुरक्षा चौकी में मध्यकाल में एक नई किला बनी, जिसके अवशेष आज भी हैं. आज इस चौकी पर सीमा सुरक्षा बल ( BSF ) के बहादुर सिपाही तैनात हैं. हमारे बहादुर सिपाही   अनायास ही हर दिन भगवान कृष्ण  के समय के इन  बिखरे अवशेषों का नित्य ही दर्शन करते हैं. सुरक्षा चौकी  विघाकोट बहुत विशाल थी. इस सुरक्षा चौकी के नियंत्रण में कच्छ के रण में फ़ैली सम्पूर्ण द्वारका नगर की सुरक्षा व्यवस्था थी. 1993 में अहमदाबाद स्थित इसरो  के वैज्ञानिक   डॉ. पी अस ठक्कर ने पहली बार विघाकोट के आसपास के बिखरे अवशेषों को सेटेलाइट में देखा. परन्तु वे यह नहीं समझ पाए की ये भगवान कृष्ण के समय के अवशेष हैं.  इसरो ने  डॉ.पी.अस. ठक्कर  के नेतृत्व में इसका कार्बोन डेटिंग भी किया है जिसका समय 3100 ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE ) की मिलती है.  इसरो की कार्बोन डेटिंग का काल समय, मेरे द्वारका खोज की  कार्बोन डेटिंग से बिलकुल मिल जाती है.   द्वारका में डूबे  सिरेमिक टाइल्स के ऊपर निर्मित कोरल रीफ के कार्बोन डेटिंग  का समय भी 3100 ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE )है, जब द्वारका डूब गई. आज इस स्थल पर नागरिकों का प्रवेश नहीं है. पर सौभाग्य से इंडिया टुडे के फोटोग्राफर ने कभी इसका मार्मिक चित्रण लिया है, यह बिना जाने की यह किसकी सभ्यता है. आज यहां  बी.एस.एफ के सीमावीर इन अवशेषों के साथ साथ मार्तृभूमि की महान रक्षा  कर रहे हैं.  यह स्थल धीरे धीरे नष्ट होती जा रही है. इस स्थल को सुरक्षित रखना भारत का नैतिक दायित्व है. 


☝विघाकोट के ये भगवान कृष्ण  कालीन अवशेष आज वीर सीमा प्रहरी के सुरक्षा में है.इन अवशेषों को पहली बार  इसरो ( ISRO, Ahmedabad )  ने 1993 में देखा था.  इसरो ( ISRO ) तब यह समझ नहीं पाया की यह किनकी सभ्यता है ? इसरो ने इन अवशेषों का कार्बन परीक्षण किया है जिसका कार्बोन डेटिंग 3100  ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE ) मिलती है.  

☝द्वारका के सुन्दर सिरेमिक प्लेट, द्वारका के साथ साथ गहरे समुद्र में डूब गई. इस प्लेट के ऊपर कोरल रीफ बन चुकी है. मेरे द्वारका खोज में इस कोरल रीफ की कार्बोन डेटिंग 3100  ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE ) की मिली हैइसरो ( ISRO, Ahmedabad )  तथा मेरी कार्बोन डेटिंग दोनों की  खोज भगवान कृष्ण के द्वारका को 3100 ईस्वी पूर्व ( 3100 BCE ) में  रखते हैं.   द्वारका नगर,  डूबने से  कोई 100 वर्ष पहले अस्तित्व में आई थी. 

 

☝विघाकोट में इस प्रचीन अवशेषों पर मध्यकाल में एक नई किला बनी थी. यह प्राचीन चौकी सामरिक दृष्टि से कच्छ के रण की प्रधान सुरक्षा चौकी थी 


☝कच्छ के रण में खावडा से विघाकोट कोई १०० किलो मीटर की दूरी पर है. दोनों ओर रेगिस्तान है. इलाका निर्जन ओर वियावान रहती है  

वीरेंद्र के झा की " डिस्कवरी ऑफ़ लॉस्ट द्वारका"- द्वारका खोज पर तीन खंडों में हिंदी प्रेजेंटेशन यूट्यूब में देखें:

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About the author: Mr. Birendra K Jha, is an established administrator. He is  author, writer, speaker on the Hinduism and the Hindu studies. He has authored several books. He worked for 18 years under the sea for discovering the submerged Dwarka of Bhagwan Krishna. He developed the analogue technology in the satellite science for discovering  the submerged archaeological structures under the sea. He is an established consultant now, providing expert consultation on the offshore and the onshore GPS based hydrocarbon location points. He is also providing in India and abroad satellite based consultation on the archaeological sites. 


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