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Tryst with Destiny: Rakhigadhi Site.

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Rakhigadhi Mound: This compact layer found from the bank of the dried River Sarasvati, covers three periods, Mahabharat, Ramayan and the Rigveda. The height of mound can be calculated using the height of animal just passing below the mound. This site is again using the old obsolete method of excavation in 2024. Modern technology like Satellite science is still far away. This is major reason that the agency is  far behind the target. In Marine Archaeology use of Satellite science is very successful. This is demonstrated here that how the Satellite science shall be used  in detecting the Archaeological treasures under the Earth at Rakhigadhi.          * Birendra K Jha                                                                                                                                             Email:  birendrajha03@yahoo.com Rakhigadhi Mound: Satellite image first:  High Resolution picture of site. Trench is  covered with blue polythene cover sheet. The top trench is the &quo

Search of Lost Kavatapuram in Tamil Nadu - The ancient contemporary site of Dwarka of Bhagwan Krishna.

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Britishers understood very clearly that the Indians are very poor in their own history. Better they divided the  Indians to meet out their own policies. Even after 78 years of India's independence Indians do not know what is the historical record preserved in the Ramayan, Tamil Sangam or the Mahabharat. They just believe on bogus and blind theories supplied by the Britishers. Who were here to rule the Indians, without mind.   *BIRENDRA K JHA   Email:  birendrajha03@yahoo.com The  first two Tamil Sangam Academy conference were conducted at Kavatapuram. This city in the Mahabharat era submerged in the sea. The people of the submerged   Kavatapuram  city,  migrated to the  present-day city of Madurai. The last  Sangam Academy at Kavatapuram had  huge fifty-nine members handling different subjects and about 3,700 persons, who  had attended this conference. In this Academy conference, Bhagwan Krishna mentioned as the King of Dwarka was also present. Probably He, Presided the conference.

"Kavatapuram Town" - The Lost Land of the Pandyan Kingdom.

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The Satellite Science has broken the bogus fantasy spread in the name of Archaeology and history. The Science established that the Bhartiya traditional knowledge preserved in the literatures of the Tamil Sangam, Mahabharat and the Puranas are true. In old archives there is a mention of  the "Pandian Tivu".  Pandian Tivu means the  Island of the Pandyan's Kingdom. When entire Kingdom submerged, then the uppermost part of the land, which remained survived has been an identification point of local people traditionally to identify and relate it with the Pandyan Kingdom. The Government of India and the Tamil Nadu Government both failed to apply mind that the ancient & vast Pandian Kingdom is just submerged below this island. The city of the  Pandyan Kingdom is "Kavatapuram".  This city was existing when Bhagwan Krishna's  Grand City Dwarka was present in the Gulf of Kutch. The "Kavatapuram" and the Dwarka City both are Pre-Harappan sites.    *Biren

सेटेलाइट वैज्ञानिक सर्वेक्षण तथा स्थल सर्वेक्षण में वाराणसी का प्राचीन मंदिर

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  रेड कलर बैंड में वाराणसी के पास हाल में मिले हिन्दू पक्ष के चिन्हित शिवलिंग स्थल ( वजू स्थान ) के बाहर लगभग ६. ३ मीटर आगे एक गोल रूप में  जमीन के अंदर प्राचीन ढांचे के होने  की सूचना दे रही है।   लगभग १८०० किलोग्राम का लैंडसेट उपग्रह पृथ्वी से कोई ९०० किलो मीटर ऊपर से , वाराणसी के बाबा विश्वनाथ को अपने शक्तिशाली नेत्र से देख रहा  है। इसकी वैज्ञानिक विश्लेषण करने की क्षमता अद्भुत है। दो विभिन्न अवस्थाओं में इस परिसर को देखी गई है।  सामान्य अवस्था (पहला चित्र) ,  असामान्य अवस्था - रेड कलर बैंड  लाइट में स्थल जांच (दूसरा चित्र) तथा असामान्य अवस्था - रेड कलर बैंड  लाइट - गोलाकार रूप में वर्णित ढांचा स्थल (तीसरा  चित्र) । पहला चित्र और तीसरे चित्र का तुलनात्मक अध्ययन करने पर तीसरे चित्र के पीले रेखा में  वर्णित स्थल को   ध्यान से देखें।  इस स्थल पर उजले रंग के गहरे निशान  बन रहे हैं जो जमीन में दबे ढांचे  से निकल रही ऊर्जा को रेड कलर बैंड  ने पकड़ी है।     सामान्य अवस्था (पहला चित्र ) असामान्य अवस्था -  रेड कलर बैंड  में स्थल जांच (दूसरा चित्र) असामान्य अवस्था - रेड कलर बैंड  में वर्

Relation Between Bhagwan Krishna Dwarka City And The Bahrain's Dilmun Port - New Perspective On The Harappan Civilization ( With notes in Hindi & English )

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  भगवान कृष्ण की द्वारका नगर और अरब सागर के बहरीन बंदरगाह के बीच निश्चित व्यापारिक सम्बन्ध थे।  ये सम्बन्ध हड़प्पा नगर के जन्म होने के बहुत पहले से ही स्थित थी।  द्वारका डूबने के बाद यहाँ के लोगों ने जब हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में नया नगर बसाया, उस समय भी द्वारका के विस्थापित  लोगों  ने  बहरीन के साथ इस व्यापारिक सम्बन्ध को यथावत रखा। बहरीन, भगवान कृष्ण के  द्वारका नगर के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्ध को बहुत ही महत्त्व देता था।  इसलिए द्वारका में प्रवेश करने वाले राजमुद्रा चिन्ह बहरीन में  मिले हैं।  केनॉएर से लेकर एरनेष्ट मैके जैसे लोगों ने, संस्कृत नहीं जानने के कारण  अनर्गल और गलत टिप्पणी  इस राजमुद्रा के विषय में की है।  महाभारत के शांति पर्व में भगवान कृष्ण के इस त्रिमुख वराह  मुद्रा की सूचना  दी गई है। बहरीन और बेट द्वारका के ये दोनों राजमुद्रा   द्वारका में ही बने हैं , इसलिए बहरीन के व्यापारी , द्वारकानगर में प्रवेश करने के पूर्व , बेट-द्वारका में इस राजमुद्रा को दिखाते थे । इसलिए सुमेर के साहित्य का यह "मेलूह" द्वारका है न की हड़प्पा या मोहनजोदड़ो।  बहरीन के व्यापारियों का सम

Advancement of the Space Archaeology

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In 2000 the ISRO satellite, IRS-P4, first time used the OCM Camera Tool to examine the Gulf of Kutch. No body looked into the data, until Jha in the end period of 2000, studied seriously about the data. This tool separated the sea water and submerged islands in two distinct color. Other than the  red circled marked area, the entire land remains submerged under the sea. This is the Dwarka of Bhagwan Krishna.  During the last 75 years researches conducted around the archaeology and the history dealing with the ancient Indian history, have spoiled and is just only a piece of garbage. Untrained people sitting in archaeology and faculties, came up with poor researches. Without application of mind, they burned their fingers on the dirty British opinion and age chronology. The Britishers, were in India to rule the Indians, who draw their inspiration from the Vedas. The researchers have failed to take note of the vast archaeological truth and proof of the Mahabharat age, submerged under th

पाणिनि और भगवान कृष्ण की द्वारका

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  उत्तर वैदिक काल का प्रथम वैज्ञानिक ग्रन्थ पाणिनि की अष्टाध्यायी है. इस महान ग्रन्थ को द्वारका डूबने के कुछ वर्ष पहले लिखी गई थी.   ज्ञात हो की द्वारका डूबने के बाद यहां के लोगों ने सारस्वत प्रदेश स्थित मोहनजोदड़ो की यात्रा की थी तथा यहां नए नगर का निर्माण किया था.   इसलिए इस पुस्तक में द्वारका और सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों के विशिष्ट सांस्कृतिक विवरण मिलते हैं.  भगवान  कृष्ण के समय भारत कैसी थी यह जानने का प्रयत्न गवेषकों ने कभी नहीं की।  भगवान  कृष्ण के समय ज्ञान का सूर्य  भारत वर्ष के अनंत आकाश में चरमोत्कर्ष रूप में अवस्थित थी।  महाभारत और पुराण के अतिरिक्त पाणिनि के अष्टाध्यायी ऐसे महत्वपूर्ण  ग्रन्थ हैं जिनसे सर्वदा भगवान कृष्ण के समय के भारत के विषय में गहरी सूचना प्राप्त होती है। भगवान कृष्ण,  योग सूत्र के प्रणेता पातंजली ( प्रथम ) और यास्क  समकालीन हैं.     यास्क ने भगवान कृष्ण के निर्देशन में कठिन वैदिक शब्दों की एक शब्दकोष तैयार की थी जिसे निघण्टु कही जाती है।  यास्क ने पुनः इस पर निरुक्त भी लिखा।  यह अभिक्रिया इसलिये की गई थी की स्वयं द्वारका काल में,  भारतवर्ष में अनेक ऋग्