प्रमाण आधारित खोज रिपोर्ट : कच्छ के रण में एक दिन Evidence Based Discovery Report: Rann of Kutch
☝चित्र १ : वलय के आकार के दो दीवार नगर को घेरे हुए स्पष्ट दिख रही है. सबसे ऊपर के दीवार के अंदर तीन पोत के हेंगर भी बनी दिख रही है - The two half circles are protecting the city houses, when sea water was outside the half circle. There is running wall enclosure beyond the semi circle wall. In between the semi circle wall and the running wall - sea water was present. Just after the semi circle wall again sea water was filled intentionally to secure the fort. This water was filled inside the trench shown just after the semi circle wall. This is exactly the replica of the various sea forts of the submerged Dwarka.
नमक. नमक की सफ़ेद चादर ओढ़े, कच्छ के विशाल रण द्वारका के वैभव के साक्षी हैं. यह ऐसी नहीं थी जैसा आज दिख रही है. ५१०० वर्ष पहले यहां विशाल समुद्र थी, जिसका पानी तीव्र भूकंप में कच्छ के खाड़ी में एकाएक चली गई. यह पानी फिर वापस न लौटी . १८१९ में फिर एक तीव्र भूकंप आई, उसने कच्छ के विशाल रण को सफ़ेद चादर में परिवर्तित कर दिया. द्वारका की ही तरह सुरक्षित समुद्र से घिरी टापू कच्छ के रण में मैंने खोजी है, जहां द्वारका का विस्तार की गई. विशाल सुनियोजित नगर निर्माण के साथ साथ इसी जगह विशाल बंदरगाह भी बनाये गए, जो द्वारका से जुड़े थे. इस टापू को खोजना भी कम विस्मयकारी नहीं है. समुद्र के पानी के नीचे तो आप जा भी सकते हैं. पर नमक के सफ़ेद चादर के नीचे पहुंचना एक कठिन प्रक्रिया है. कच्छ के रण में यह विशाल नगर है. द्वारका नगर निर्माण के ही तरह इसके दो सुरक्षित दीवार बने हैं. जो इसे एक सुरक्षित समुद्री किला बनाती है. इस नगर के मकान, द्वारका के ही तरह सीधी रेखा में बने हैं. द्वारका में जिस तरह सफ़ेद सिरेमिक पाषाण के मोजाइक कलाकृति प्राप्त होती है. उसका सर्वथा यहां अभाव है . यह अंतर बतलाती है की द्वारका के बाहर जो भी सुनियोजित नगर निर्माण हुए हैं - वे कम बजट वाले नगर हैं. चित्र में हम देखेंगे दो वलय आकार के दीवार सम्पूर्ण नगर को घेरे हुए है फिर इस दीवार के बाहर एक और सुरक्षित दीवार है - जिसके बाहर समुद्र का पानी था. द्वारका समुद्री किला की तरह, यहां भी समुद्र के पानी को किले के अंदर प्रवेश कराई जाती थी - यह उपक्रम इसे सम्पूर्णतः समुद्री किला बनाती है. इस किले के अंदर तीन बंदरगाह के हेंगर मिले हैं - जो यह स्पष्ट करती है की यह स्थल कभी समुद्र से घिरी थी. हरिवंश में उल्लेख है, द्वारका में जनसंख्या दवाब अधिक थी, जिस कारण नए समुद्री दुर्ग कच्छ के रण में बनाई गई. भगवान कृष्ण के ही समय, ये विशाल स्थल बने थे.
नमक के मोटी परत के नीचे भगवान कृष्ण की यह "विस्तारित द्वारका" ओझल रहती यदि मानसून के दिनों में, इस स्थल की खोज करने की प्रेरणा भगवान ने न दी होती. मानसून के दिनों में, विशाल जल राशि यहां रहती है. नमक की मोटी परत हट जाती है तथा यह स्थल अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य में डूब जाती है. जिसका वर्णन शब्दों में संभव नही. भगवान कृष्ण के अनंत सखा, साइबेरियन पक्षी, रूस के साइबेरिया से कोई ४७६० किलोमीटर की लम्बी उड़ान भरकर सीधे भगवान के पास यहां पहुंचते हैं. यह क्रम ५१०० वर्षों से चल रहा है. इन साइबेरियन पक्षियों ने भगवान की संपत्ति को सुरक्षित रखा है. इनके सूर्ख लाल चौंच, लोभी मनुष्यों को भयभीत करती हैं तथा इस स्थल से दूर रखती हैं. ये पक्षी इस स्थल में समुद्री शैवाल जमा होने नही देते. वे उसे खा लेती हैं. मानसून के बाद धीरे धीरे पानी, नमक के मोटी परत में बदलने लगती हैं. अब भगवान का पूरा नगर, नमक के मोटी परत के नीचे अदृश्य हो जाएगी. जब यह स्थल सम्पूर्णतः उजले बर्फ की तरह सफ़ेद और वातावरण वीरान हो जाती है तब ये साइबेरियन पक्षी इस स्थल को छोड़ते हैं. ये वापस साइबेरिया रूस लौटे जाते हैं. मानसून के दिनों में प्राचीन पुरावशेष, एनालॉग टेक्नोलॉजी में शीशे की तरह साफ़ दिखने लगती है. सेटेलाइट के इस चित्र में स्पष्टतः विशाल दीवार से घिरी प्राचीन नगर अवशेषों को देखी जा रही है, जो भगवान कृष्ण के द्वारका की विशेष पहचान है. यह धोलावीरा से दस गुना क्षेत्रफल में बड़ी स्थल है तथा धोलावीरा से कहीं अधिक सुन्दर और अत्याधुनिक नगर हैं. इस स्थल के निर्माण में महाभारत के शांति पर्व में बताये गए समुद्री दुर्ग के निर्माण नियम के सिद्धांत मिलते हैं.
☝चित्र २: सफ़ेद नमक के चादर में कुछ भी स्पष्ट नहीं होती. यह चित्र संख्या १ के ही स्थल की फोटोग्राफी है The white salt filled area has hidden the fort inside here exactly at this spot. The photograph no. 1 is the structure hidden here.
☝चित्र ३ : वलय दीवार के अंदर कतार बद्ध मकान निर्माण . The fort is showing the city houses in rows.
☝चित्र ७ : बहुत बड़े भू भाग में यह समुद्री किला फ़ैली है. इस समुद्री किले के अंदर मानव निवास के विशाल चिन्ह प्राप्त होते हैं. यह समुद्री किला ठीक द्वारका के डूबे समुद्री किले की तरह ही है . The discovery of this site is adding new dimension of the Indian History at 3200 BCE about the Dwarka of Bhagwan Krishna. This site is an extension of Dwarka at the Run of Kutch. This is very very large and expanded site built and designed according to the Dwarka Sea Fort of Bhagwan Krishna. A massive evidence of human settlements are seen here with houses built in rows, with clear wall enclosures. In between the wall enclosure - the city is built.
चित्र १०: भगवान कृष्ण और उनकी द्वारका का विशाल विस्तार मात्र कच्छ के खाड़ी तक ही सीमित नही थी - इसका विस्तार कच्छ के महान रण तक फैली थी. वर्ष के आधे समय ये पानी में डूबे रहते हैं तथा अन्य समय नमक की सफ़ेद मोटी परत इसके ऊपर रहती है. वातावरण निर्जन और वियावान रहती है . हमें मानसून की प्रतीक्षा करनी होगी जब ये स्थल समुद्री पानी में डूब जाएंगे. विशाल समुद्री पानी में नमक घुल जाती है. उसी नमक के नीचे अब हमें छिपी विशाल सभ्यता दिखती है. ये हमें सीधे भगवान कृष्ण के समय के पास लिए चलते हैं. चित्र में ये विशाल पत्थर के ईंट कभी नगर के बाहर समुद्री पानी के तटबंध थी. ये विशाल तटबंध के दीवार विशाल समुद्र की गवाही देते हैं. Coastal Sea Water enclosure to manage availability of seawater inside and outside the coastal wall. This coastal wall is situated outside the Dwarka Township. In between two coastal wall enclosures, a deep trench is seen, which was filled with sea-water. According to the Mahabharat, such "Jal-Durg" ( Water Fort ) was equipped with trained crocodiles, to protect the inner town from any human invasion from outside.
Above site discovery is protected under the Intellectual & Property Law. No part of the images or information shall be used for commercial and other purposes. सम्पूर्ण चित्र कॉपीराइट तथा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के अधीन सुरक्षित हैं. इनका व्यावसायिक या अन्य उपयोग वर्जित है. पत्राचार पता : birendrajha03@yahoo.com
About the author: Mr. Birendra K Jha, is an established administrator. He is author, writer, speaker on the Hinduism and the Hindu studies. He has authored several books. He worked for 18 years under the sea for discovering the submerged Dwarka of Bhagwan Krishna. He developed the analogue technology in the satellite science for discovering the submerged archaeological structures under the sea. He is an established consultant now, providing expert consultation on the offshore and the onshore GPS based hydrocarbon location points. He is also providing in India and abroad satellite based consultation on the archaeological sites.
Nice Sir jy shree kareena
ReplyDeleteThanks. Bhagwan Krishna bless you
ReplyDeleteExcellent effort to enlighten ancient history and civilization jai shree krishna jai ho
ReplyDeleteThanks. Bhagwan Krishna bless you
DeleteSalute you Ji... Namasthe 🙏
ReplyDeleteThanks. Bhagwan Krishna bless you
DeleteOld Dwaraka submerged in water.. Now directly, truthfully shown to the world that Dwaraka and Krishna were not myth...
ReplyDeleteThanks
DeleteAbsolutely amazing to read the article .Tq sir .
ReplyDeleteThanks
DeleteGreat information
ReplyDeleteThanks
Deleteनमस्कार🙏
ReplyDeleteये दीवाल इस महीने देखा जा सकता है क्या? हमारे पास 2 दिन का समय रहेगा 26-28 जुलाई 22. हम हडप्पा भी देखना चाहते हैं । सजीव
मानसून के समय कच्छ के रण में यह स्थल पानी में डूबी रहती है. हड़प्पा देखने के लिए आपको पाकिस्तान जाना होगा.
Deleteसर अद्भुत आश्चर्यजनक शोध है आपका।
ReplyDeleteप्रणाम है आपको
धन्यवाद
Deleteवाह,आपकी मेहनत को प्रणाम 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद
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