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प्राचीन नदी संस्कृति और हमारी द्वारिका

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    धर्मज्ञः पंडितो ज्ञेयो नास्तिको मूर्ख उच्यते कामः संसार हेतुश्च हृत्तआपो मत्सरः स्मृतः  ( धर्म मार्ग पर चलने वाले पंडित आस्तिक होते हैं.  वे नास्तिक मूर्ख हैं जो  कृष्ण को मिथक मानते हैं  )                   भारत वर्ष में एक अत्यंत प्राचीन नदी बहती थी जिसका विस्तृत वर्णन ऋग्वेद से लेकर महाभारत के काल तक प्राप्त होती है . यह सरस्वती नदी थी . ऋग्वेद में कोई ५० से भी ऊपर सरस्वती नदी के संदर्भ प्राप्त होती है . महाभारत के समय धीरे धीरे इसकी धारा क्षीण हो रही थी . फिर भी नदी अपने अस्तित्व में थी . यह नदी   कच्छ के खाड़ी में स्थित द्वारिका   के पास के   रेगिस्तान में जल डाल देती थी .   सेटेलाइट के फोटोग्राफ में इस विपुल जलराशि को समेटने वाली   जल पेटिका के प्राचीन पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं . इस जल पेटिका का प्राचीन सम्बन्ध हरियाणा स्थित पेहोवा से था जहां से बह कर ये कच्छ के खाड़ी में पहुँचती थी . महाभारत में भगवान कृष्ण के भाई बलराम जी का द्वारिका से लेकर सरस्व